Saturday, June 27, 2009

कैसे होगा छत्तीसगढ़ का विकास

भले ही सत्ता के ढिढोंरचियों की जमात को यह बात नहीं जमें लेकिन विचारशील लोग कहने लगे है कि आखिर छत्तीसगढ़ का विकास कैसे होगा? सवाल इसलिए उठाया जा रहा है कि डॉ. रमन सिंह सरकार ने अब तक प्रदेश विकास की कोई ठोस योजना ही नहीं प्रस्तुत की है। पिछले छह सालों से जनता इस इंतजार में है कि भाजपा सरकार विकास मॉडल देर सबेर पेश करेगी और एक उम्मीद उत्पन्न होगी कि इस रास्ते पर चलकर अमीर धरती के गरीब लोग सुखी हो सकेंगे।
गौरतलब है कि पृथक छत्तीसगढ़ राज्य गठन का उद्देश्य ही ये था कि मध्यप्रदेश के इस भूृ-भाग में तमाम आर्थिक संसाधन होने के बाद भी इलाका विकास की दौड़ में पिछड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ की खनिज-वन संपदा भरपूर होने के बाद भी यहां का पिछड़ापन अभिशाप ही था। राज्य गठन का बहुत बड़ा कारण यही था। उस दौरान कल्पना की गई थी कि अगर मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ को अलग कर दिया जाए तो ये क्षेत्र पांच साल में ही प्रगति के रथ पर सवार होकर सरपट दौडऩे लगेगा। पॉच क्या नौ बरस बीत गए है लेकिन अब तक राज्य के विकास का प्रारूप ही तय नहीं हो पाया है। विडंबना ही कही जायेगी कि डेवलपमेंट के लिए प्लानिंग ही नहीं है जो ये आश्वासन दे सके कि इस रास्ते पर चलकर राज्य विकसित हो सकेगा।
यहां याद दिलाना लाजमी होगा कि धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के 44 प्रतिशत भू-भाग में जंगल है तो लोहा, कोयला, सीमेंट, एल्युमीनियम के बड़े-बड़े कारखाने यहां स्थापित है। और कुछ लग भी रहे है। बावजूद इसके राज्य पिछड़ा हुआ है। रोजगार के लिए पढ़े-लिखे नौजवान भटक रहे है तो खेतिहर मजदूर अभी भी पलायन को मजबूर है। प्रदेश में न तो उच्च शिक्षा के माध्यम है और ना ही सूदूर दंतेवाड़ा और कोरिया में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था हो पाई है। सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकार के पास कोई बड़ी योजना ही नहीं है । आवागमन के साधनों में सड़केें ही है जो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। रेल सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकार खानापूर्ति के लिए बयानबाजी तक सीमित है।
देश के नक्शे में भौगौलिक दृष्टि से भले ही छत्तीसगढ़ राज बन गया है लेकिन इस प्रदेश की अपनी पहचान बनना बाकी है। कृषि, उद्योग-व्यापार और कला संस्कृति के माध्यम से अलग छवि बनाने के लिए जरूरी है कि योजना बनाई जाए और सारे लोग उसे कार्यरूप में परिणित करने का प्रयास करें। यह बाद की बात होगी कि योजना का क्या हश्र होगा? पहली जरूरत तो इस बात ही है कि कैसे छत्तीसगढ़ का विकास हो? छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद कांग्रेंस के मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने प्रदेश विकास के प्रति चिंता जाहिर करते हुे इस दिशा में दो कदम जरूर बढ़ाया था। श्री जोगी ने यहां के कृषि और वनौषधि उत्पादों पर वैल्यू एडीशन का कांसेप्ट रखा और फसलचक्र परिवर्तन सहित कई मामलों में उन्होंने विकास की अवधारणा रखी। तेजी से राजनैतिक क्षितिज मं दैदीव्यमान होने की अति महत्कांक्षा से श्री जोगी राजनीति के कुचक्र में फंसकर विवादास्पद हो गए और सरल-सहज डॉ. रमन सिंह को यह दायित्व मिल गया।
अच्छी बात है कि सरलता से डॉ. रमन सिंह सरकार चला रहे है लेकिन बिना किसी वि•ान और योजना के सरकार का कामकाज अधूरा ही है। बहरहाल छत्तीसगढ़ के विकास के लिए सरकार को योजना का प्रारुप बताना ही चाहिए। ये मांग कोई नाजायज नहीं है जिसे सत्ता के चाटुकार हवा में उड़ा दे कि श्री जोगी की तरफदारी करने वाले लोगों को ये हक नहीं है कि वे सरकार से कोई मांग रखे। दरअसल कतिपय नेताओं के भीतर सत्ता के मद ने लोक तंत्र की परंपरा और जनता के मौलिक अधिकार को कुचलने का दंभ उत्पन्न कर दिया है। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि केवल 38 प्रतिशत लोगों ने ही उन्हें वोट दिया है और विपक्षी दल से मात्र दो फीसदी की बढ़त ने ही उन्हें कुर्सी दी है। अभी भी प्रदेश में रहने वाले लाखों लोगों ने इनके कार्यों पर शत्-प्रतिशत मुहर नहीं लगायी है अगर राजनीति के जानकार इस बात पर ध्यान आकर्षित कर रहे है कि छत्तीसगढ़ के विकास का प्रारूप प्रस्तुत किया जाए तो सरकार को सोचना तो चाहिए।

Tuesday, June 23, 2009

संदेह है रमन की नीयत पर

15 जून 2009 को दैनिक छत्तीसगढ़ वॉच में प्रकाशित
रायपुर। पूरे प्रदेश में अराजकता की स्थिती है। किसानों को अब तक खरीफ धान खरीदी के बोनस की बकाया राशि नहीं मिली है तो रबी धान की समर्थन मूल्य पर भी खरीदी नहीं हो रही है। मुफ्त बिजली की घोषणा कागजों तक सीमित है। बिल नहीं पटाने वाले किसानों के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज हो रही है तो खिलाफ में प्रदर्शन करने वाले किसानों पर पुलिस डंडे बरसा रही है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह पूरी तरह एक्सयोज हो गए है और भारतीय जनता पार्टी ने अपने राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति केबाद घोषणाओं को भुला दिया है। इससे किसान स्वयं को ठगा महसूस कर रहे है। यह विचार तेजतर्रार कांग्रेस विधायक नंदकुमार पटेल ने छत्तीसगढ़ वॉच से विशेष बाचतीत में व्यक्त किया। पूर्व गृहमंत्री श्री पटेल प्रदेश सरकार की असफलता पर कड़े प्रहार करते हुए कहते है कि सरकारी संसाधनों और भ्रष्टाचार के पैसे की बदौलत भले ही बीजेपी को चुनावों में सफलता मिली गई हो लेकिन उसकी पोल जल्दी ही खुलने वाली है। किसान अब डा. रमन सिंह की नीयत पर ही संदेह करने लगे है कि वे किए गए वायदे पूरे कर पायेंगे या नहीं। सवालों का जवाब देते हुए श्री पटेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में राज्य सरकार के पास विकास के लिए कोई योजना ही नहीं है। आज जो भी विकास कार्य हो रहे है वो सब केंद्र सरकार द्वारा मुहैय्या करवाई जा रही राशि पर हो रहे है। विडंबना ये है कि उस पर भी भारी गड़बड़ी हो रही है। रोजगार गांरटी योजना की भारी दुर्गति है। मजदूरों को उनके काम का भुगतान नहीं मिल रहा है तो कार्य स्वीकृति के क्षेत्र में भारी भेदभाव किया जा रहा है। इसी तरह प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में सड़को की गुणवक्ता नहीं है तो राजीव गांधी शिक्षा मिशन की राशि में भारी भ्रष्टाचार हो रहा है। सरकार की असफलता और भ्रष्टाचार के मामलों में कांग्रेस पार्टी के प्रभावी प्रदर्शन नहीं होने के सवाल का जवाब देते हुए श्री पटेल ने कहा कि कांग्रेस के शीर्ष ने इस मसले पर गौर किया है और इस बात के प्रयास हो रहे है कि भाजपा सरकार के खिलाफ कैसे प्रभावी प्रदर्शन किए जाए। समीक्षा की जा रही है कि कांग्रेस को कैसे चुस्त-दुरूस्त किए जाए। उन्होने आगे कहा कि लोग अब समझने लगे है कि भाजपा जो कहती है वो करती नहीं इसलिए आगामी नगरीय निकाय चुनावों में उसकी स्थिति खराब होगी और कांग्रेस की बेहतर। जल्दी ही भाजपा का असली चेहरा सामने आ जायेगा। छत्तीसगढ़ राज्य में लगातार कमजोर होती कांग्रेस के प्रश्र का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व अब गंभीरता से विचार कर रहा है। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव परिणामों का समीक्षा हो रही है। एक ओर देश में जहां श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में राहुल गांधी के प्रयासों से जो परिणाम आए है उससे अच्छे संकेत मिल रहे है। प्रदेश की कमजोर स्थिती पर दिल्ली की पूरी नजर है। इसी संदर्भ में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के मनोनयन की चर्चाओं में श्री पटेल के नाम भी शामिल होने के सवाल पर उन्होने जवाब दिया कि वे दावेदार नहीं है। सोनिया गांधी प्रदेश की पूरी स्थिती से वाकिफ है और यहां के नेताओं के कार्यों का वे बेहतर आंकलन कर निर्णय लेंगी। खरीद धान खरीदी में घोटाले के संदर्भ में प्रदेश कांग्रेस द्वारा राज्यपाल को दिए गए ज्ञापन का उल्लेख करते हुए श्री पटेल ने कहा कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच होना चाहिए। सरकार के करीबी राइस मिलर्स द्वारा बोनस के लिए एक ही धान खरीदी की रिसाइकिलिंग की गई है ताकि बोनस की राशि का घोटाला किया जा सके। पांच से दस लाख मीट्रिक धान इस तरह खरीदा गया है। इसी तरह पूरे प्रदेश में उद्योगों के प्रदूषण से लोगों का जीना मुहाल हो गया है। एक तरफ सरकार का ही एक विभाग प्रदूषण नियंत्रण मण्डल प्रदूषण के खिलाफ अदालत जाता हैतो दूसरी तरफ सरकार इस मामलों को लटकाए रखना चाहती है। रायगढ़ में प्रदूषण के चलते पानी को लोग तरस रहे है। श्री पटेल ने कहा कि किसान की हालत सबसे बदतर है उन्हें न तो अच्छी किस्म का बीज मिल पा रहा है और ना ही गुणवक्तायुक्त खाद। सरकार पूरी तरह असफल साबित हुई है।

Friday, June 19, 2009

अलग राज्य का सपना यथार्थ बना

एक सपना था जो बहुतों के दिल और दिमाग में छाया हुआ था कि छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश से अलग कर दिया जाए तो इस राज्य का विकास तेज गति से होगा। पृथक राज्य को आर्थिक विकास के लिए बिजली, पानी, लोहा, कोयला,सीमेंट और धान के अलावा 44 प्रतिशत क्षेत्र में फैले जंगल की नियामत मौजूद थी। इस सपने को पूरा किया पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रायपुर की आमसभा में की गई घोषणा के अनुरूप एक नवंबर 2000 को देश के 26वें राज्य के रूप में गठिक छत्तीसगढ़ के निर्माण के रूप में श्री बाजपेयी सदैव याद किए जायेगें। वहीं इस राज्य निर्माण के लिए अथक प्रयास करने वाले तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकेगा। बात शुरू हुई थी पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग से बताते है कि सन् 1956 में मध्यप्रदेश राज्य पुर्नगठन से पूर्व छत्तीसगढ़ सन् 1948 से मध्य भारत एवं उससे पूर्व सेन्ट्रल प्रोविंयशल (सीपी) में शामिल था उससे पहले 1952 में खूबचंद बघेल ने छत्तीसगढ़ महासभा के अधिवेशन में पृथक छत्तीसगढ़ की मांग रखी और बाद में वे छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा कहलाए। इसके अलावा ठाकुर प्यारे लाल सिंह, पं. सुंदर लाल शर्मा, बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल, घनश्याम सिंह गुप्ता जैसे कई लोगों ने छत्तीसगढ़ राज्य स्थापित करने के लिए वैचारिक आंदोलन को जन्म दिया। इसके बाद संत-कवि पवन दीवान हरि ठाकुर और बहुत से लोगों ने इस मशाल को थामा और राज्य निर्माण की आवाज बुलंद करते रहे। उसी दौरान बहुत से ऐसे लोग भी थे जो इस मांग से सहमत नहीं थे उनका कहना था कि इससे क्षेत्रीयता की भावना को बढ़ावा मिलेगा और देश में अलगावाद पनपेगा। इन लोगों में शुक्ल बंधुओं का नाम प्रमुख था। सन् 1991 में छत्तीसगढ़ राज्य का मुद्दा ठंडे बस्ते मेंं था। उस दौर में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के प्रदर्शन समाचार पत्रों में छाए हुए थे। छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगर भिलाई केन्द्र बिन्दु बनी हुई थी और मजदूरों के धरनाप्रदर्शन ने उद्योगपतियों की नींदे उड़ा दी थी। शांत कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी की आवाज ने क्रांति पैदा कर दी थी। जनता भी आश्चर्यचकित थी कि कैसे मजदूर एकजुट होकर हक के लिए लड़ रहे है। उसी दौरान 28 दिसंबर 1991 को श्री नियोगी की हत्या ने बवाल खड़ा कर दिया एक जुलाई 1992 को भिलाई में रेल रोको आंदोलन के तहत पुलिस फायरिंग में 13 मजदूरों की मौत हो गई इस दौरान मजदूर आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का ये संघर्ष जहां रंग ला रहा था वहीं छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को पुन: लाइमलाइट लाने के लिए तत्कालीन सांसद और कांग्रेस (इ) के राष्ट्रीय प्रवक्ता स्व. चंदूलाल चंद्राकर ने अपनी वाणी मुखरित की। सच कहा जाए तो श्री चंद्राकर ही थे जिन्हे छत्तीसगढ़ राज्य प्रेरणास्त्रोत कहा जाना चाहिए। इस बात से राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी सहमत है और सन् 2009 में श्री चंद्राकर की पुण्यतिथी पर उनके गृहग्राम कोलिहापुरी, जिला दुर्ग में श्री जोगी ने राज्य निर्माण का श्रेय श्री चंद्राकर को दिया है। (समाचार पत्र की कटिंग सम्मलित है)21 मई को 1991 को कांग्रेस आदि के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री राजीवगांधी की हत्या के बाद इंका को केन्द्र में सरकार बनाने का अवसर मिल गया था और नरसिंह राव प्रधानमंत्री चुने गए थे तो प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा थे। छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को लेकर तब छत्तीसगढ़ में केन्द्र में तत्कालीन केन्द्रीय संसदीय कार्य मंत्री विद्याचरण शुक्ल से सवाल किया जाता था तो वे राज्य पुर्नगठन आयोग के गठन की बात कहकर मुद्दे से अलग हो जाते थे वहीं उनके बड़ा भ्राता मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल का भी यही रवेैया रहता था तब पृथक आंदोलनकारी शुक्ल बंधुओं को जमकर कोसा करते थे और राज्य निर्माण में सबसे बड़ा बाधक समझते थे। वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाला पटवा पृथक छत्तीसगढ़ राज्य को कुंठाग्रस्त नेताओं की मांग बताते रहे। उनके इस बयान को पक्ष में मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय भी शामिल हुए तब भारतीय जनता पार्टी के ही रमेसबैस, बद्रीधर दीवान, रेशमलाला जांगड़े और चंद्रशेखर साहू, दिलीप सिंह जूदेव, छत्तीसगढ़ राज्य के समर्थक रहे। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की मांग को ही देखते हुए श्री पटवा ने सन् 1992 में छत्तीसगढ़ के सात जिलों को 16 जिलों में पुर्नगठित किया जो बड़ा कदम था इससे छत्तीसगढ़ की जनता को राहत मिली। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में उस समय भाजपा के पैतरों पर मासिक पत्रिका मध्यभारत पनिदृश्य जानवरी 1999 में अमरनाथ तिवारी का लेख संलग्न है। छह दिसम्बर 1992 का दिन लोग भूले नहीं है। इस दिन बहुचर्चित आयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा रामभक्तों ने ढहा दिया। पूरे देश में उन्माद फैल गया। हिन्दुत्व और हिन्दु अस्मिता के मुद्दों ने राजनीति में भूचाल ला दिया। ये वो दौर था जब भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता शिखर पर थी और उनके नेताओं के तेजतर्रार भाषण आग उगलते थे। रामलाल आयेंगे, मंदिर वही बनायेगें, जय-जय श्री राम के गगन भेदी नारों के साथ जनसौलाब उमड़ पड़ा था। तब राजनीति का एक ही एजेंडा था। उसी दौरान भोपाल में हुए संप्रदायिक दंगे के बाद केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने प्रदेश की भाजपा सरकार को भंग कर दिया। कहते है इसके पीछे केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह की बड़ी भूमिका थी। सन् 1993 के विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने अपने घोषणा पत्र में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का वायदा किया। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और मुख्यमंत्री दिगविजय सिंह इस वायदे के प्रति संकल्प का दुहराते है।(संडेमेल-6-12 फरवरी 1994 में प्रकाशित समाचार की कटिग संलग्न है)प्रदेश कांग्रेस आई के घोषणा पत्र में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का वायदा शामिल होने के बाद भी शुक्ल बंधु इस बात से सहमत नहीं थे। वहीं स्व. चंदूलाल चंद्राकर के साथ ही राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, अजीज जोगी, पवन दीवान, नरसिंह मंडल, रविन्द्र चौबे, भूपेश बघेल, सत्यनारायण शर्मा, राजकमल सिंघानिया, गुरुमुख सिंह होरा, राधेश्याम शर्मा जैसे नेता साथ में थे तो भारतीय जनता पार्टी से बर्खास्त केशव सिंह ठाकुर के अलावा बीजेपी के ही रमेश बैस, चंद्रशेखर साहू, दिलीप सिंह जूदेव, रेशम लाल जांगडे, के अलावा इनायत अली श्रीचंद सुंदरानी पृथक राज्य के पक्षधर थे। पटवा मंत्री मण्डल में शामिल रहे विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने भी तब छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में सहमति प्रदान कर अपनी प्रोफाईल सुधार ली थी।(13 दिसम्बर 1993 को दैनिक भास्कर में प्रकाशित समाचार)पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को लेकर गठित छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच मेंं सभी दलों के नेता शामिल थे तो इसके लिए 11 सदस्यीय प्रेसिडियम गठित था वहीं महासचिव की जवाबदारी डॉ. केशव सिंह ठाकुर के कंधों पर थी। 5 अक्टूबर 1993 को छत्तीसगढ़ बंद के बाद अगले वर्ष पुन: 1994 को 5 अक्टूबर के ही दिन सभी जिला मुख्यालयों में धरना-प्रदर्शन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसी दौरान श्री चंद्राकर पर ही उंगली उठी कि वे मंच का राजनैतिक उपयोग कर रहे है और राज्य गठन के प्रति गंभीर नहीं है उस दौरान उच्चन्यायालय की बेंच छत्तीसगढ़ में स्थापित करने की मांग भी जोर-शोर से उठी थी और रायपुर एवं बिलासपुर के बीच इस बात को लेकर भारी विवाद था। तब 26 दिसंबर सन् 1994 को श्री चंद्राकर के रायपुर आगमन पर उनके द्वारा जवाब दिया गया कि केन्द्र पहले खंडपीठ की घोषणा कर दे रायपुर-बिलासपुर का मसला बाद में तय कर लिया जायेगा। (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न है)दो जनवरी 1995 को रायपुर में सर्वदलीय राज्य निर्माण मंच की रैली और भाषण ऐतिहासिक रहा। सप्रे शाला मैदान में कांग्रेस के नेताओं ने छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आर-पार की लड़ाई के लिए आव्हान कर इस मांग को सार्थक प्रदान की। (समाचार की कटिंग संलग्न) सन् 1996 के लोकसभा चुनाव से पूर्व 11 मार्च 1995 को नई दिल्ली में राज्य आंदोलन कर्मियों ने प्रदर्शन किया और गिरफ्तारियां दी। इस प्रदर्शन में कांग्रेस सांसद पवन दीवान, व अजीत जोगी के अलावा भाजपा राज्यसभा सदस्य लखी राम अग्रवाल एवं गोविंद राम गिरी शामिल हुए। छत्तीसगढ़ राज्य सर्वदलीय मंच के नेता पुरुषोत्तम कौशिक ने इस संदर्भ में रायपुर लौटकर पत्रकारों को प्रधानमंत्री को सौंप गए ज्ञापन से अवगत कराया। (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न) छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच के अध्यक्ष मंडल के सदस्य चंदूलाल चंद्राकर का आकस्मिक निधन हो गया। इससे अलग छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण को बड़ा झटका लगा। सन् 1996 के चुनाव में केन्द्रीय कांग्रेस दल ने अपने घोषणा पत्र में अलग छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का वायदा किया जो एक बड़ी उपलब्धी रही ( समाचार पत्र कटिंग संलग्न)श्री चंद्राकर के मार्गदर्शन विहिन के बाद भी छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच काम करता रहा है उसने आर्थिक नाकेबंदी और रेल रोको आंदोलन की घोषणा की लेकिन छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के सहयोग नहीं मिलने से आंदोलन फिस्स हो गया। (कटिंग संलग्न) उसी दौरान व्यापारियों में दो गुट बन गए और छत्तीसगढ़ फेडरेशन ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज का गठन हुआ जिसमें बिलासपुर में रेल जोन की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ बंद का आव्हान किया लेकिन छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्रीज के असहयोग से यह असफल रहा। इसी दौरान सन् 1996 के लोकसभा चुनाव से शेयर दलाल हर्षद मेहता के प्रतिभूति घोटाले के अलावा हवाला कांड ने देश की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी थी। हर्षद मेहता कभी रायपुर में ही रहे है तो हवाला काण्ड में भिलाई के उद्योगपति बी.आर. जैन केन्द्र बिन्दु में थे वहीं इस मामले में तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री एवं जलसंसाधन मंत्री विद्याचरण शुक्ल का भी नाम शामिल था। 1996 के लोकसभा चुनाव से पूर्व छत्तीसगढ़ राज परिषद का गठन जरूर हुआ जिसने इस अलग राज्य के मुद्दे पर चुनाव लडऩे और जनमत संग्रह की बात रही लेकिन असरकारक नहीं रहा अभियान। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों दलों ने अपने किया जिसे छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज ने असहयोग कर असफल कर दिया। सन् 1998 में केन्द्र जनतादल सरकार के अवसान के बाद भारतीय जनता पार्टी की 23 दलों की गठबंधन सरकार बनी जिसके राष्ट्रीय एजेंडों में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण को शामिल किया जाए तो इधर विधानसभा चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री दिगविजय सिंह ने बड़ा दांव खेलते हुए 31 अगस्त 1998 को मध्यप्रदेश विधानसभा का विशेष सत्र आहूत कर मध्यप्रदेश पुर्नगठन विधेयक 1998 प्रस्तुत कर छत्तीसगढ़ राज्य की नींव रख दी (कटिंग संलग्न)मध्यप्रदेश पुनगठन विधेयक विधानसभा मे पारित होकर लोकसभा में भेज दिया गया जहां भारतीय जनता पार्टीे के तत्कालीन सांसद चंद्रशेखर साहू ने पूरा दबाव बनाया कि इसे संसद में प्रस्तुत किया जाए लेकिन शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन यह पेश हुआ। सत्रवासन होने की वजह से यह मुद्दा फिर से ठंडे बस्ते में चला गया (कटिंग संलग्न)शीतकालीन सत्र के अवसान पश्चात इसे 1999 के बजट सत्र में पारित होने की उम्मीदें तत्कालीन सांसद एवं केन्द्रीय राज्य मंत्री रमेश बैस को थी और वे इसके लिए प्रयासरत भी रहे। (समाचार कटिंग संलग्न) लेकिन ऐसा नहीं हुआ इधर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ सचिवालय और विधानसभा भवन की कवायद शुरू कर दी लेकिन तब भी बहुत से लोगों को ये उम्मीद नहीं थी कि राज्य इतनी जल्दी बन जायेगा।दरअसल उस समय भारतीय जनता पार्टी आगामी नवम्बर माह में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव में लाभ लेना चाहती थी सो उसने संसद के अंतिम दिन यह संसदीय कार्यमंत्री मदनलाल खुराना ने प्रस्तुत किया। विधानसभा चुनाव में दोनों राजनैतिक दलों बीजेपी और कांग्रेस ने फिर ये वायदा घोषणा पत्र में किया और भाजपा ने एक वोट से दो सरकार का नारा भी दिया। इसके चलते भारतीय जनता पार्टी को छत्तीसगढ़ अंचल में बहुत लाभ हुआ और उसे अच्छी खासी सीटें भी मिली लेकिन शेष मध्यप्रदेश की जनता ने राज्य के बंटवारे पर एक तरह से नाखुशी जाहिर की और भाजपा सत्ता से दूर ही रही। चुनाव नतीजों के बाद यह लगने लगा कि केन्द्र की भाजपा सरकार अब छत्तीसगढ़ राज्य के मुद्दे पर चुप्पी साध लेगी। बावजूद इसके 1999 के बजट सत्र में परित होने की उम्मीदें तत्कालीन सांसद एवं केन्द्रीय राज्य मंत्री रमेश बैस को थी और वे इसके लिए प्रयासरत भी रहे। (समाचार कटिंग संलग्न)लेकिन ऐसा नहीं हुआ इधर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ सचिवालय और विधनसभा भवन की कवायद शुरू कर दी लेकिन तब भी बहुत से लोगों को ये उम्मीद नहीं थी कि राज्य इतनी जल्दी बन जायेगा। (समाचार कटिंग संलग्न)सन् 2000 ऐतिहासिक घटनाक्रम का वर्ष रहा। वर्ष की शुरूआत में ही अलग छत्तीसगढ़ राज्य का मुद्दा बड़ी तेजी से समाचार पत्रों की सुर्खियों में छा गया। वर्ष की शुरूआत में ही छत्तीसगढ़ राज्य के लिए लोक कलाकारों को संगठित करने की योजना लोकरंग के महासचिव तपेश जैन ने बनाई और अध्यक्ष मोहन सुंदरानी व युवा कांग्रेस नेता अमर जीत चावला के समक्ष प्रस्ताव रखा कि नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर धरना दिया जाए। 6 फरवरी 2000 को सौ से भी ज्यादा लोक कलाकारों ने धरने के साथ ही अपनी कला का प्रदर्शन किया। न्यूज चैनल वालों के लिए ये आकर्षण का केन्द्र बन गया। तमाम बड़े चैनलों ने छत्तीसगढ़ी कलाकारों की कला प्रदर्शन के साथ राज्य की मांग को रखा जो देश भर का ध्यान आकर्षित हुआ। अब तक के धरना प्रदर्शनों में जहां केवल भाषणबाजी होती थी वहां पंडवानी, पंथी, भरथरी के अलावा लोकगीत, संगीत, नृत्य ने सभा बांध दिया। इस कार्यक्रम में हिचक के साथ पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल भी शामिल हुए जो इससे पहले तक राज्य निर्माण के मुद्दे पर अलग राग अलापते रहे है। कार्यक्रम की सफलता से श्री शुक्ल के मन में राज्य आंदोलन की भावना पनपी और फिर उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य संघर्ष मोर्चा की स्थापना कर तीन चरणों के आंदोलन की घोषणा की। पहले में छत्तीसगढ़ बंद दूसरे चरण में जेल भरो आंदोलन और तीसरे चरण मेें 25 जुलाई 2000 को संसद का घेराव। इन तीन चरणों के आंदोलन में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच के कई नेता आचार्य सरयूकांत झा, जीवेन्द्र नाथ ठाकुर सहित कई लोग जुड़ गए। इधर कांग्रेस के ही कई नेता श्री शुक्ल के इस कदम से हतप्रभ थे तो वहीं वे इस आंदोलन पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते रहे। सबसे ज्यादा विरोध तत्कालीन मंत्री भूपेश बघेल ने किया जो छत्तीसगढ़ के स्वप्न दृष्टा स्व. खूबचंद बघेल की जन्म शताब्दी के अवसर पर रायपुर में स्वाभिमान रैली का आयोजन में जुटे थे। जेलभरो आंदोलन के साथ ही कांग्रेस में बयानबाजी भी पक्ष-विपक्ष में शुरू हो गई। (समाचार पत्र की कटिंग)विद्याचरण शुक्ल के छत्तीसगढ़ राज्य संघर्ष मोर्चा के आंदोलन ने कांग्रेस की राजनीति में ही हलचल मचा दी। तत्कालीन मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने रायपुर के कांग्रेस भवन में बैठक आयोजित की उद्देश्य था कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा कांग्रेस संसद सदस्यों को सहमति का निर्देश देना और भिलाई व राजनांदगांव सभा में इसके लिए प्रतिबद्धता दोहराना। इस बैठक में कांग्रेस के नेता विद्याचरण शुक्ल के संघर्ष मोर्चा के आंदोलन की जगह कांग्रेस पार्टी से आंदोलन चलाए जाने पर जोर देते रहे जो विवाद का बना कारण भी जमकर हुड़दंग भी हुआ। (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न)वहीं तत्कालीन मंत्री धनेंद्र साहू और सत्यनारायण शर्मा वीसी शुक्ल के आंदोलन से सहमत नहीं थे (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न)स्वाभिमान रैली के जरिए छत्तीसगढिय़ावाद के मुद्दे को उठाने वाले तत्कालीन मंत्री भूपेश बघेल भी वीसी शुक्ल के खिलाफ थे और उन्हे भाजपा पर भरोसा भी नहीं था (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न)इधर भारतीय जनता पार्टी के नेता और तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की बात लगातार करते रहे और उन्होंने संसद के पावस सत्र में इसके विधेयक की प्रस्तुति का भरोसा भी दिलाया। (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न)19 जुलाई को रायपुर में स्वाभिमान रैली में प्रदेश कांग्रेस सरकार के मंत्री भूपेश बघेल के अलावा कुर्मी समाज के लोग बड़ी संख्या में जुटे जिसमें केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस भी थे। अगले ही दिन 20 जुलाई को छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए संघर्ष मोर्चा का बंद भी सफल रहा। (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न)25 जुलाई 2000 का दिन छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए ऐतिहासिक था। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण संघर्ष मोर्चा के साथ ही छत्तीसगढ़ शिवसेना ने संसद का घेराव जबर्दस्त ढंग से किया। हजारों लोग इस प्रदर्शन में शामिल हुए। इसके लिए छत्तीसगढ़ राज्य संघर्ष मोर्चा ने छत्तीसगढ़ से नई दिल्ली तक के लिए पहली बार विशेष रेलगाड़ी की व्यवस्था की थी। इधर जहां संसद के बाहर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए प्रदर्शन हो रहा था वहीं संसद के भीतर गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने तीन अलग राज्य छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड के लिए विधेयक प्रस्तुत कर राज्य निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की। संघर्ष मोर्चा के इस आंदोलन में मध्यप्रदेश कांग्रेस सरकार के मंत्री महेन्द्र कर्मा, धनेन्द्र साहू के अलावा कांग्रेस विधायक विधान मिश्रा, मो. अकबर, धर्मजीत सिंह, मंतूराम पवार, राजेन्द्र पामभोई, रामलाल भारद्वाज, मदनगोपाल सिंह, प्रोफेसर गोपाल राम, हरषद मेहता, घनाराम साहू, अमितेश शुक्ल के अलावा पूर्व मंत्री अशोक राव, पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम, पूर्व सांसद खेलन राम जांगडे, श्रीमती वीणा वर्मा भी शामिल हुई। प्रधानमंत्री को सौंपे जाने वाले ज्ञापन की सूची की प्रति संलग्न है। अगस्त में छत्तीसगढ़ सहित तीन राज्यों का राज्य पुर्नगठन विधेयक संसद में पारित हो गया तो 28 अगस्त 2000 को महामहिम राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य गठन की तिथी तय हो गई। इसी दौरान छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री पद की भागदौड़ शुरू हो गई। महेन्द्र कर्मा ने आदिवासी विधायक को मुख्यमंत्री बनाने लांबिग शुरू की और आदिवासी एक्सप्रेस दौडऩे लगी। दरअसल उस दौरान आदिवासियों विधायकों को बस में सवार कर बस्तर से लेकर सरगुजा तक की यात्रा कार्यक्रम ने ही आदिवासी एक जुटता को उक्त नाम दिया जो आज भी प्रयोग किया जाता है। आदिवासी एक्सप्रेस की बैठको में कांगे्रस के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजीत जोगी भी शामिल होते रहे लेकिन उन्हे बाहर का रास्ता दिखाने के लिए महेन्द्र कर्मा ने पूरी ताकत लगा दी थी। उसी दौरान श्री कर्मा और श्री जोगी के बीच बढ़ी दूरियां बाद में श्री जोगी के फर्जी आदिवासी प्रमाण पत्र को लेकर हुए बवाल का कारण भी बनी थी। (समाचार कटिंग संलग्न)छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री को लेकर कांग्रेस में भारी उठापटक मची रही। एक नवंबर से पूर्व अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव गुलाब नबी आजाद और प्रदेश प्रभारी प्रभाराव कांग्रेस विधायकों की रायशुमारी के लिए रायपुर पहुंचे। नए सर्किट हाऊस शंकर नगर में पहले कांग्रेस विधायकों की बैठक हुई फिर उसके बाद आलाकमान द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों ने अलग-अलग विधायकों से चर्चा कर मुख्यमंत्री के नाम मांगे गए। इससे पहले समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुका था कि श्रीमती सोनिया गांधी ने अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनाने की हरी झंडी दे दी है और तत्कालीन दिग्विजय सिंह गुट को यह संदेश दे दिया गया था कि हाई कमान श्री जोगी को मुख्यमंत्री बनाना चाहता है। उधर विद्याचरण शुक्ल मुगालते में थे कि छत्तीसगढ़ राज्य के लिए अंतिम समय में उन्होंने संघर्ष किया है सो मध्यप्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ में शुक्ल परिवार का सदस्य ही प्रथम मुख्यमंत्री बनेगा कहते है। राजनीति में पूर्व कर्म के फल जरूर मिलते है सो नरसिंह राव सरकार में शक्तिशाली रहे श्री शुक्ल ने तब राजनीति से दूर श्रीमती सोनिया गांधी की भारी उपेक्षा की थी वो दिन श्रीमति गांधी भूली नहीं होगी अत: श्री शुक्ल को तवज्जों नहीें मिली और मात्र सात विधायकों का साथ ही उनके पास था। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा अजीत जोगी के नाम की करने के बाद दिग्विजय ंिसंह, गुलाब नबी आाजद और श्रीमती प्रभा राव विद्याचरण शुक्ल के जख्मों पर मरहम लगाने के उद्देश्य से उनके लाभांडी स्थित फार्म हाऊस गए तो राजनीति की ऐसी काली स्याह घटना हुई जो इतिहास में शर्मनाक ही कही जायेगी कि इस दल को वीसी समर्थकों ने धक्का मुक्की और गाली गलौज के साथ स्वागत किया। राज्य गठन की बेला में इस अभूतपूर्व घटना ने छत्तीसगढ़ को जिस तरह से कलंकित किया उसके परिणाम स्वरूप बाद में कई घटनाएं हुई जो राज्य की राजनीति में उथल पुथल का कारण बनी इस घटना के बाद विद्याचरण शुक्ल के फार्म हाऊस पर पत्रकारों का जमवाड़ा हुआ तो श्री शुक्ला ने सफाई दी कि कुछ गुंडे उनके फार्म हाऊस में घुस आए थे जिन्होंने तबके मुख्यमंत्री के साथ अभ्रद व्यवहार किया। दिग्वियज सिंह शालीन राजनीति के लिए पहचाने जाते है सो उन्होंने उस समय के पॉवर का उपयोग नहीं किया और बाद में उनके सहयोग से मुख्यमंत्री बने अजीत जोगी नें भी उन कांग्रेसियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। इस घटना के बाद श्री शुक्ल और श्री जोगी के रिश्ते अच्छे नहीं रहे और कालांतर में श्री शुक्ल के कांग्रेस छोडऩे का कारण भी बनी। वो समय भी आ गया जब छत्तीसगढ़ का उदय हुआ। 31 अक्टूबर की रात कई आशंकाओं से भरी थी। तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी नई दिल्ली से रायपुर पहुंच गई थे। अफवाहें थी कि वीसी शुक्ल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा विधायक दल का समर्थन मिल सकता है। वीसी गुट के विधायकों के साथ बीजेपी विधायकों की मिली जुली सरकार बनाने की भारी कुशंकाए थी। लेकिन पुलिस ग्राऊंड में रात 12 बजे के बाद एक नवंबर की अल सुबह को जब अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो सब आशंकांए समाप्त हो गई। कहते है कि श्री जोगी और श्री आडवाणी के सम्बंध बड़े सौहाद्रपूर्ण थे सो बीजेपी ने ऐसा कुछ नहीं किया जो उसकी राजनीति के लिए अच्छा नहीं होता।बहरहाल तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी ने छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माता के पद से नवाजा और उन्हे इतिहास पुरूष बना दिया। बिना किसी बड़े आंदोलन और खूनी संघर्ष के छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण एक सपने से जैसा था। और सही अर्थों में कहा जाए तो राज्य निर्माण के लिए सभी दलों के नेताओं ने प्रयास किया। भाजपा और कांग्रेस के अलावा जय छत्तीसगढ़ के दाऊ आनंद कुमार का एक हजार दिन तक का धरना दिया हो या डॉ. उदयभान सिंह चौहान का प्रदर्शन। छत्तीसगढ़ पार्टी के जागेश्वर साहू से लेकर अनिल दूबे हो या आजाद छत्तीसगढ़ फौज के ललित मिश्रा और रमेश चंद्राकर। बहुत से नाम है। पौने दो करोड़ जनता की आशा और आकांक्षाओं की पूर्ति में जुटे तमाम ज्ञात अज्ञात लोगों के सपने ने यथार्थ का स्वरूप आखिर पा ही लिया।

Wednesday, June 17, 2009

संगठन विहीन कांग्रेस का कैसे होगा कल्याण ?

(दैनिक छत्तीसगढ़ वॉच 15 जून 2009 को प्रकाशित)

कभी कांग्रेस नेताओं की ये सोच थी कि कांग्रेस को वोट देना जनता की मजबूरी है क्योंकि कांग्रेस के अलावा कोई भी पार्टी स्थिर सरकार नहीं दे सकती। विपक्षी दलों के लिए भी बड़ी चुनौती थी कि उनके दल की सरकार पूरे पांच साल तक नहीं चल पाती है। लेकिन ये मिथक टूटा बल्कि यह भी साबित हुआ कि लोग सरकारें बदलने की जगह पुरानी सरकार को चुनने से भी नहीं हिचकते। केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी ने 24 दलों की खिचड़ी सरकार को पांच साल तक चलाकर भ्रम तोड़ा तो गुजरात मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में यह आशंकाएं निर्मूल हो गई कि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में दुबारा नहीं आती। अब वो समय भी नहीं रहा है कि केंद्र में विरोधी दल की सरकार प्रदेशों में राजपाट बदल दें या सरकार को भंग कर दे लोग जागरूक हुए है तो पार्टियों का आधार भी मजबूत हुआ है। सो,अब कांग्रेस गांधी-नेहरू परिवार के करिश्माई नेतृत्व के अलावा संगठन को मजबूत कर अपना अस्तित्व बचाने के साथ ही खोई हुई प्रतिष्ठा की जुगत में है। हाल ही में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में युवा नेतृत्व के चलते जर्बदस्त फायदा हुआ है और पार्टी जिन राज्यों में संगठन को मजबूत कर रही है उसे लाभ भी मिल रहा है। इधर, इसके विपरीत छत्तीसगढ़ में कांग्रेस लगातार रसातल की ओर अग्रसर है। संगठन यहां नाममात्र को है। गुटबाजी पर कोई लगाम नहीं है। सबसे बड़ी बात ये है कि केंद्रीय स्तर पर प्रदेश के चारो अलग-अलग गुट की पहुंच है जिसके चलते एक गुट के हाथों में कमान नहीं आ पा रही है । पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की बीमारी के दौरान राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा गुट को अवसर मिला था कि वे संगठन में अपनी जड़े मजबूत करने के साथ ही जनता के बीच में अपनी प्रभावी स्थिति बना सकते थे लेकिन इस गुट के नेताओं में जमीनी राजनीति की जगह एयरकंडीशन रूम में समय व्यतीत कर दिया। अब श्री जोगी वापस आ गए ये उनकी तानाशाही और वर्चस्व की अफवाहों से अपनी गद्दी सलामत रखना चाहते हैं। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी का पिछले पांच साल से गठन नहीं हो सका है। वर्तमान में जो कमेटी कार्य कर रही है वह पुरानी है और उसके पुनर्गठन की कवायद कई बार की जा चुकी है लेकिन कांग्र्रेस तो कांग्रेस है सो हर बार मनोनीत अध्यक्षों को नई दिल्ली से मायूस होकर लौटना पड़ता है। सन् 2008 के विधानसभा और हाल ही में 2009 लोकसभा चुनाव में पार्टी की बुरीगत होने के बाद फिर से प्रदेश अध्यक्ष के मनोनयन की उठापटक की खबरें हंै। अध्यक्ष और दो कार्यकारी अध्यक्षों के फार्मूले के बाद भी पार्टी में बाकी पदों पर मोतीलाल वोरा गुट का ही वर्चस्व है और अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल और महेंद्र कर्मा- भूपेश बघेल गुट के नेता हाशिए पर है।यहां यह बताना लाजमी होगा कि प्रदेश में चार अलग-अलग गुट हैं। पहला गुट मोतीलाल वोरा का है। स्वयं श्री वोरा भले ही छत्तीसगढ़ की राजनीति में ज्यादा रूचि नहीं लेते हो पर केंद्र में पार्टी के कोषाध्यक्ष है सो उनका पॉवर जर्बदस्त है। दूसरा गुट पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का है। मुख्यमंत्रित्व काल में उनका गुट बना और ये उस दौरान शक्तिशाली था। तीसरा गुट विद्याचरण शुक्ल का है। कभी श्री शुक्ल का जलवा हुआ करता था और अंचल में शुक्ल बंधुओं का दबदबा था जिसे पहले अर्जुन सिंह ने बाद में दिग्विजय सिंह ने तोड़ा। मोतीलाल वोरा छत्तीसगढ़ राज्य गठन के साथ ही पॉवरफुल हुए जब वे राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाए गए। और चौथा गुट पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और पूर्व उपनेता प्रतिपक्ष भूपेश बघेल का है जो अजीत जोगी की बीमारी के दौरान बना।दरअसल गुटों में बटी कांग्रेस के लिए सन् 2004 से लेकर 2007 तक का समय संगठन के लिहाज और जोगी विरोधी नेताओं के लिए स्वार्णिम अवसर का समय था क्योंकि उस दौरान श्री जोगी बिस्तर पर थे तो विद्याचरण शुक्ल पार्टी छोड़कर चले गए थे। ऐसे समय में वोरा गुट के नेताओं के कब्जे में कांग्रेस थी और ये लोग चाहते तो अपने कार्यो से अलग छवि बना सकते थे। श्री वोरा सन् 2004 में कुछ समय के लिए अध्यक्ष बने लेकिन उनके पास वक्त कहां था ? फिर दिग्विजय सिंह के करीबी डा. चरणदास महंत अध्यक्ष बनाए गए। लेकिन श्री महंत भी महेन्द्र कर्मा और भूपेश बघेल की तरह बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से सौहार्द्र संबंध कायम कर संगठन को भुला बैठै। वे अपनी कार्यकारिणी तक नहीं बना सकें। डा. रमन सिंह से संबंधों के आरोप ने उन्हे पदावनत कर कार्यकारी अध्यक्ष बनवा दिया लेकिन इसी संबंध के चलते वे कोरबा से चुनाव भी जीत गए। विधानसभा चुनाव से पूर्व रायपुर जिला अध्यक्ष धनेंद्र साहू का जोरदार प्रमोशन प्रदेश अध्यक्ष के रूप में हुआ लेकिन वे न तो कार्यकारिणी बना पाए और ना ही विधानसभा चुनाव में पार्टी को जितवा पाए। बल्कि स्वयं भी हार गए। लब्बोलुआब ये है कि कांग्रेस को अब अपनी गलतियां सुधारनी होगी। सत्ता के लोभ में जो अराजक तत्वों की घुसपैठ हो गई है उन वापरसों को साफ करना होगा और संगठन में चुनाव की परपंरा शुरू करनी होगी। दो-चार असमाजिक तत्वों के हुडदंग से घबराने वालें खाक राजनीति करेगें ! सो ऐसे कायरों की पार्टी में क्या जरूरत है। आवश्यकता है कांग्रेस संगठन को मजबूत किया जाए और ये वक्त की मांग भी है।

Saturday, June 13, 2009

जीत •े असली हीरो हैं डॉ रमन सिंह

अगर •वर्धा •े वि•ास •े लिए मैंने ए• भी •ाम •िया है तो इस बार जरूर भारतीय जनता पार्टी •ो जिताना नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा। ये उद्गार मुख्यमंत्री डॅा रमन सिंह •े है जो उन्होंने हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव •े दौरान अपने गृह क्षेत्र •वर्धा में व्यक्त •िये थे। इस क्षेत्र •े विजय हुए प्रत्याशी डॉ. सियाराम साहू बताते हैं •ि यह बोलते हुए डॉ. सिंह बेहद भावु• हो गए और ऐसा लगता है •ि वे रो पड़ेंगे। •वर्धा शहर ने इस बार मुख्यमंत्री •ी लाज रखी और बीजेपी •ो यहाँ से 1700 से भी ज्यादा वोटों •ी लीड मिली। डॉ. साहू बताते हैं •ि इस बार •ार्य•र्ताओं ने यह चुनाव डॉ. रमन सिंह •े नाम पर लड़ा और प्रतिष्ठïा •ो बचाने •े लिए तन-मन-धन न्यौछावर •र दिया जो •ि अभूतपूर्व था। दूसरी बार विधानसभा •ा सदस्य चुने जाने •े बाद डॉ. साहू •वर्धा •ो पूरे छत्तीसगढ़ में अलग पहचान दिलाने •ा सं•ल्प ले चु•े है। और वे इस बार क्षेत्र •े लिए बहोत •ुछ •रना चाहतें है।मिनीवार्ता से विशेष बातचीत •रते हुए पूरे प्रदेश •े भाजपा प्रत्याशियों में सर्वाधि• मत प्राप्त 78,817 और 10,878 वोटो से विजेता •वर्धा •े विधाय• डॉ. सियाराम साहू ने सवालों •ा जवाब देते हुए •हा •ि प्रदेश में दोबारा सर•ार बनाने •ी ए• ही वजह है और वो है घोषणापत्र से बढक़र प्रदेश •ा चहुंमुखी वि•ास। डॉ. रमन सिंह ने गाँव-गरीब और महिला हर वर्ग •े लिए •ल्याण•ारी योजनाए लागू •ी। हर क्षेत्र में योजनाए बनी। गरीबों •ो तीन रुपए •िलो चावल, 25 पैसे में नम•, •िसानों •ो तीन प्रतिशत ब्याज दर पर ऋ ण, पाँच हार्स पावर त• मुफ्त बिजली, आठवीं त• मुफ्त •िताबों •े अलावा वृह एवं निराश्रितों •े लिए 300 रू. पेंशन, वि•लांगो •े लिए 200 रू. पेंशन, महिलाओं •ो पंचायत में पचास प्रतिशत आरक्षण स्व सहायता समूह •े तहत आठ लाख महिलाओं •ो आर्थि• सहायता, बालि•ाओं •े लिए सरस्वती साई•िल योजना, 17,000 हजार सामूहि• विवाह •े माध्यम से •न्यादान एवं आर्थि• सहायता। मुख्यमंत्री स्वालम्बन योजना •े तहत नौजवानों •े लिए दु•ानों •ा निर्माण, जीवन से ले•र मरण त• •े लिए मुक्तिधाम •ा निर्माण और बडी बात हमर छत्तीसगढ़ योजना े्•े तहत धार्मि• एवं पर्यटन स्थलों •े जीर्णोंद्वार और सौन्दर्यी•रण •े लिए राशि प्रदान •रना। डॉ. साहू आगे बताते हैं •ि डॉ. रमन सिंह ने हर वर्ग •े लिए •ुछ न •ु छ •िया। वो •ेवल ऊपर ही नहीं निचले स्तर •े लोगों •ा ध्यान रखते थे। आई.ए.एस.अफसर से ले•र •ोटवार त• •ा उन्होनें ख्याल रखा है। 25,000 •ोटवारों •ो दैनि• वेतन भोगी •र्मचारी से प्रमोट •र नियमिति•रण •रने •े साथ ही डै्रस, जूता और टार्च प्रदान •र उन•ा दिल जीत लिया। इतना ही नहीं पहले जो पंचायत सचिव पांच सौ रुपए प्रतिमाह मानदेय प्राप्त •रते थे वे अब पांच हजार पाने लगे हैं। शिक्षा•र्मियों •ी भर्ती •े साथ ही उन•े लिए बहुत •ुछ •िया है। डा. रमन सिंह ने हीरों •ी तरह •ाम •िया है और वे दिलों •ो जीतना जानते हैं। इसलिए •िसी भी बच्चे •ो अगर दिल •ी बीमारी है तो उस•े इलाज •े लिए खजाना पूरी तरह खुला है। डा. साहू बताते हैं •ि बैगा आदिवासियों •े उत्थान •े लिए डा. रमन सिंह ने बहुत •ुछ •िया है। जमीन •ा पट्टïा देने •े अलावा म•ान निर्माण •े लिए 34000 रुपए •ी सहायता •े अलावा बहुत सी योजनाएं थी। अगले पांच साल •ी •ार्ययोजना •े संदर्भ में वे बताते हैं •ि •वर्धा नगर पालि•ा •ो नगर निगम •ा दर्जा दिलाने •े अलावा वे इस जिले •ा नाम पूरे छत्तीसगढ़ में हो इस•े लिए महत्वा•ांक्षी योजना पर विचार •र रहे हैं। अगले पांच साल •े लिए घोषणा पत्र से आगे जा•र डा. रमन सिंह बेहतर •ार्य •रेंगे इस•ा उन्हें पूरा विश्वास है।
•र दिखाया डा. रमन ने •रिश्मा
तपेश जैन
रायपुर। भारतीय जनता पार्टी लगातार यह मिथ• तोड़ रही है •ि वो ए• बार सत्ता में आने •े बाद दुबारा नहीं आती। गुजरात में नरेंद्र मोदी •े बाद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी •ी वापसी से ये टोट•ा टूट गया। मध्यप्रदेश •ो छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ में सिंहासन छत्तीसी •ी विजय •े लिए अगर •ोई ह•दार है तो वे ए•मात्र नेता मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ही है जिन्होंने पहले पांच साल •ा •ार्य•ाल पूरा •र भाजपा में तो रि•ार्ड बनाया वहीं पार्टी •े तमाम बड़े नेताओं •ी खिलाफत •े बीच बहुमत •ा जादुई आं•ड़ा प्रापत •र •रिश्मा •र दिखाया। इस जर्बदस्त सफलता •े पीछे उन•े गरीबों •ो तीन रूपये •िलो चावल देने •ी खाद्यन्न सहायता योजना से ज्यादा उन•ी व्यक्तिगत सर सौम्य नेता •ी छवि •े साथ ही आदिवासी अंचल बस्तर सरगुजा में वि•ास •ार्य भी है जहां पार्टी •े अभूतपूर्व सफलता मिली है। डॅा. रमन सिंह अ•ेले ऐसे नेता है जिन्होंने बस्तर में नक्सलवाद •े खिलाफ आदिवासियों •े स्वस्फूर्त आंदोलन ''सलवा जुडूमÓÓ •ा साहस •े साथ समर्थन •िया। बा•ी उन•े सहयोगियों में भारी भय रहता था •ी •हीं उन•े ज्यादा बोलने से नक्सलवादी उन्हें अपना शि•ार न बना लें। ऐसे समय में मुख्यमंत्री •ा डट•र सामना •रने से ए• अलग ही छवि जनता •े बीच बनी। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव •े प्रभारी भाजपा •े वरिष्ठï नेता रविशं•र प्रसाद •ा यह •हना बहुत मायने रखता है •ि सन 2003 में राष्ट्रवादी •ांग्रेस पार्टी •े सात प्रतिशत वोट जो इस चुनाव में •ांग्रेस •े साथ जुड़ गए थे उसे और एंटी इन•ाम्बेंसी •े वोटों से जूझ•र पुन: सत्ता प्राप्त •रना अभूतपूर्व है और इसे डा. रमन सिंह ने •र दिखाया है और वे सम्मान •े योग्य हैं। इस विश्लेषण से जो लोग इत्तेफा• नहीं रखते हो उन•े लिए बहुत से तथ्य हैं जो ये साबित •र स•ते हैं •ि डा. सिंह •े नेतृत्व ने •ांग्रेस •े गढ़ छत्तीसगढ़ में पूरी तरह सेंधमारी •र दी है। इस बात से अलग सब इत्तेफा• रखते हैं •ि आदिवासी अंचल बस्तर और सरगुजा जिस पार्टी •ा साथ दे देता है उस•ी प्रदेश में सर•ार बन जाती है इस बार भी बस्तर और सरगुजा ने •मल पर बटन दबाया है। बस्तर •ी 12 में से 11 सीट जीतर भाजपा ने नया रि•ार्ड •ायम •िया है तो सरगुजा अंचल •ी •ोरिया, अंबि•ापुर और जशपुर जिले •ी 14 में से 9 सीटों पर औ्र विशेष•र •ोरिया जिले •ी तीनों सीटों पर •ब्जा •र भाजपा ने इतिहास ही रच दिया है। अब बात •रें •ि इन क्षेत्रों में •िन •ारणों से पार्टी •ो इतनी सफलता मिली है तो •ई बातों पर गौर •रना होगा। बस्तर में जहां सलवा जुडूम •ा समर्थन ने आदिवासी मन •ो मोहा तो वहीं बस्तर और सरगुजा वि•ास प्राधि•रण •े तहत •िए गए वि•ास •ार्यों ने भी पार्टी •े प्रति वफादारी •ा भाव जागृत •िया। यहां बता दें •ि आजादी •े बाद से ही दोनों क्षेत्र उपेक्षित है और मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने इन दोनों अंचल में स्वयं रूचि ले•र वि•ास •ार्यों •ो अमलीजामा पहनाया। बस्तर और सरगुजा वि•ास प्राधि•रण •े अध्यक्ष पद •ा दायित्व निभाते हुए डा. सिंह ने जो •ाम •िए है उस•ा ही प्रतिफल इस चुनाव में मिला है।याद दिलाने वाली बात यह भी है •ि इन दोनों क्षेत्रों •े क्षत्रप सांसद नंद•ुमार साय और बलीराम •श्यप ने इस बार चुनाव में •ोई स•्रिय भूमि•ा अदा नहीं •ी बल्•ि नाराजगी •े चलते खामोशी अख्तियार •र ली थी। बस्तर टाइगर बलिदादा ने तो लता उसेंडी •ी हार पहले से ही घोषित •र पार्टी •ा मनोबल तोडऩे में •ोई •सर नहीं छोड़ी थी ले•िन वे जीती और पार्टी ने भी ऐतिहासि• विजय हासिल •ी। वहीं सरगुजा अंचल •ी राजनीति में अव्वल नेता नंद•ुमार साय •ी चुप्पी •े बाद भी डा. सिंह ने नेतृत्व •र पूरा उत्साह पार्टी में बनाए रखा। डा. रमन सिंह इस चुनाव में पूरी तरह अ•ेले पड़ गए थे। सांसद बलीराम •श्यप, नंद•ुमार साय •े अलावा रमेश बैस भी सुस्त रहे तो ताराचंद साहू, शिवप्रताप सिंह और गहिरा गुरू •े पुत्र संस्•ृत बोर्ड •े अध्यक्ष चिंतामणि महाराज •ी बगावत •े अलावा 17 सीटिंग विधाय•ों •ी अप्रत्यक्ष नाराजगी •े बीच चुनाव •ा नेतृत्व •रना टेढ़ी खीर ही था। फिर ए• तो •रेला ऊपर से नीम चढ़ा •ी •हावत •ो चरितार्थ •रते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी •े जोरदार हमलों •ा सामना •रने में अच्छे-अच्छे •ा पसीना नि•ल जाए सो डा. रमन सिंह •ो खासी मेहनत •रनी पड़ी है अपनी सल्तनत बचाने •े लिए। इसलिए डा. रमन •ी जीत •रिश्मे से •म नहीं है और उनमें संघर्ष •र जीत हासिल •रने •ा जज्बा पैदा हो गया है और इसे ही •रिश्माई नेता •हें तो •ोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
भाजपा ने वनवास •ा मिथ• तोड़ा:सुभाष राव
तपेश जैनरायपुर । भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात •े बाद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सफलतापूर्व• पूरे पांच साल राज •रने •े बाद दुबारा सत्ता हासिल •र यह मिथ• तोड़ दिया है और वह अब वि•ास •े नए आयाम स्थापित •र जनतंत्र में अपनी मजबूत और महत्वपूर्ण भूमि•ा अदा •रेगी। ये उदगार छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल •े प्रथम अध्यक्ष सुभाष राव ने व्यक्त •रते हुए वि•ास •ी योजनाएं लागू •र छत्तीसगढ़ में इतिहास रचा है। गरीब व्यक्ति •े पेट •ी चिंता •ो दूर •र जो पुण्य अर्जित •िया उस•ा प्रतिफल पुन: •ार्य •रने •ा अवसर मिला है। सवालों •ा जवाब देते हुए श्री राव ने •हा •ि तीन •ारणों से भारतीय जनता पार्टी •ो प्रदेश में जनता •ो पुन: बहुमत •े पायदान पर पहुंचाया है। सबसे अहम •ारण यह था •ि भाजपा सर•ार •ी सोच •ाम •रने •ी थी जिस•े आधार पर मुख्यमंत्री ने गाँव-गरीबों •िसान मजदूर •े लिए विभिन्न तरह •ी वि•ास योजनाएं बनाई। व्यक्ति हितों 35 •िलो चांवल प्रति माह देने •े साथ ही •िसानों •ो मिलने वाले ऋण में ब्याज •ी दर •ो तीन प्रतिशत त• घटाना है। देश में यह सबसे •म दर है। •भी यह 14 प्रतिशत थी जिसे नौ, फिर सात और उस•े बाद छ: और तीन प्रतिशत •िया गया है। हमारा सं•ल्प है •ि इसे हम शुन्य प्रतिशत •र देंगे। •िसानों •ो ब्याज मुक्त ऋण देने वाला छत्तीसगढ़ में पहला राज्य होगा। भाजपा सर•ार ने •िसानों •ा संपूर्ण धान खरीदने •े साथ ही फसल बीमा और पांच हार्स पावर त• बिजली रियायती दर पर उपलब्ध •रवा•र •िसानों •ी हितैषी सर•ार बन चु•ी है। आगामी पांच सालों में •िसानों •ो मुफ्त बिजली देने •ी योजना है। भाजपा सर•ार •ो वापसी •ा दूसरा बड़ा •ारण आतं• और भय से मुक्त शासन रहा है। लोगों ने छत्तीसगढ़ राज्य निमार्ण •े बाद ऐसी सर•ार देखी है। जिससे •िसान, छात्र, और व्यपारीयों पर लाठीचार्ज •र विरोधियों •ो प्रताडि़त •िया। बहुमत होने •े बाद भी विपक्षी दल •े जनप्रतिनिधियों •े खरीद-फरोख्त •ी राजनीति •ो देखा तो मुख्यमंत्री डॉ रमनसिंह •े •ार्य•ाल में विपक्ष •ो सम्मान •े साथ ही आम आदमी •ो उस•े अधि•ार •े साथ ही आजादी मिली। भयमुक्त शासन ने सदभावना •ा वातावरण प्रदेश में देखा। तीसरा •ारण यह है •ि •ेन्द्र •ी सर•ार में आसमान छूती महंगाई और आतं•वाद •ी बढ़ती घटनाएं। पिछले पांच साल से सुरक्षा •ी तरह •ी चीजों •े दाम बढ़ गए हैं तो आर्थि• नीतियों •े चलते उद्योग धंधों •ो मंदी •ी मार झेलनी पड़ रही है निराशा •े ऐसे वातावरण में भाजपा ने उम्मीदों •ा •मल खिलाया है और लोगों •ो लगता है •ि ये पार्टी स्थिरता •े साथ वि•ास •े लिए प्रतिबद्ध है।भाजपा में अपनी वैचारि• सोच •े लिए थिं• टैं• माने जाने वाली श्री राव •े विचार है •ि भारतीय लो•तंत्र •ी जड़ें बेहद मजबूत है और शिक्षित मतदाताओं •ी तरह अशिक्षित मतदाता थी विवे• •े साथ वोट डालते समय वैचारि• प्रतिबद्धता •ी जगह अब वि•ास और •ाम •ो महत्व देता है। इसलिए आदिवासी क्षेत्रों में जो •भी •ांग्रेस •े गढ़ रहे हैं वहां •े लोग अब प्रत्याशी पार्टी और •ार्य •ा मूल्यां•न •र वोट देते हैं जो अलग तरह •ा आधार पुख्ता हुआ है। पहले सर•ारें निगेटिव वोटों •े चलते बनती रही है अब पाजिटिव वोटों से भी बन स•ती है यह बात उभर•र सामने आई है। सत्ता में पुन: वापसी •े बाद बढ़ी हुई जिम्मेदारियों •े प्रश्न •े उत्तर में उन्होंने •हा •ि निश्चित तौर पर जवाबदेही बढ़ी है। पार्टी •ो पहले पांच साल आधारभूत संरचना •े निर्माण में लग गए अब प्रयास में होगा •ि निचले स्तर त• लोगों •ो लाभ पहुंचे। छत्तीसगढ़ नैसर्गि• अनु•ूलताओं से युक्त समृद्ध राज्य है। संभावना •ी दृष्टिï से यहां खनिज, जल, वन श्रम सभी संसाधन भरपूर मात्रा में है जो इसे समृद्ध राज्य •ी •तार में ला•र खड़ा •र स•ते हैं। छत्तीसगढ़ आत्मनिर्भर और प्रगतिशील राज्य बन स•े इन संभावनाओं •ो मूर्त रूप देना है। ऊर्जा •े क्षेत्र में नंबर वन है तो स्टील, सीमेंट, लाइमस्टोन वन संपदा में अग्रणी राज्य है। •ृषि •े क्षेत्र में धान •ा •टोरा •हा जाता है सारे संसाधनों •े उचित दोहन •े साथ वैल्यू एडीशन •रना होगा। अभी यहां से रा मटेरियल बाहर जाते हैं हमें इस•ी जगह फीनिश्ड गुड •ो बाहर भेजना होगा। इस प्र•्रिया से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी और राज्य •ो इं•म भी बढ़ेगी। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह •े नेतृत्व में भाजपा सर•ार इन सब बातों •ो अमलीजामा पहनाएगी इस•ा पूरा विश्वास है। बस्तर •े जगदलपुर जिले •े निवासी श्री राव आदिवासी अंचल •ी राजनीति में वैचारि• अंचल •ी राजनीति में वैचारि• चिंतन •े लिए पहचाने जाते हैं। बस्तर •ी 12 में से 11 सीटों पर ऐतिहासि• जीत •े सवाल पर उन्होंने जवाब दिया •ि बस्तर •ी नक्सली समस्या •ा सबसे बड़ा •ारण आर्थि• और सामाजि• विषमता है और इस•े लिए •ांग्रेस पूरी तरह दोषी है जिसने पचास सालों त• ए• छत्र राज्य •िया। इस समस्या से स्वयं आदिवासी निजात चाहते हैं और उन्होंने स्व:स्फूर्त सलवा जुडूम आंदोलन •े बाद बैलेट •े माध्यम से यह बता दिया •ि भाजपा सर•ार •े शांति प्रयासों •ो वे आगे बढ़ाना चाहते हैं। नक्सलियों •े भय से निर्वासित जीवन जीने •ो मजबूर आदिवासी अपनी संस्•ृति और परंपरा में लौटना चाहता है। राहत शिविर •ो छोडक़र स्वच्छंदता से खेती और वनोपज संग्रहण •र अपनी जीवि•ा •ा उपार्जन •रने वाले आदिवासियों ने जनतांत्रि• व्यवस्था में मोहर लगाई है। इससे निश्चित ही आदिवासियों •ो जवाब मिल गया होगा। छत्तीसगढ़ में जातिवाद •ी बढ़ती भावनाओं •े संदर्भ में पूछे गए सवाल •े जवाब में श्री राव ने गंभीरता •े साथ •हा •ि सर•ार •ो शिक्षा •ी गुणवत्ता •ो बढ़ा•र ऐसा वातावरण बना होगा जिससे स्थानीय लोग प्रतिस्पर्धा में आगे आ स•े। समाज •े पिछड़े वर्ग में अगर अवसरों में पिछडऩे •ी हीनभावना बढ़ गई तो वो अराज• स्थितियां उत्पन्न हो स•ती है जरूरत इस बात •ी है •ि शिक्षा •ा प्रसार हो और सभी वर्गों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा •ी जगह प्रतिद्वंद्विता •ी भावना त• बलवती होती है। जब असमानता हो। अत: सभी •ो समान रूप से बेहतर शिक्षा मिले ये बेहद जरूरी है । उन्हें अगर अवसर मिला तो वे इस दिशा में •ार्य •रने •े लिए हमेशा तत्पर रहेंगे।

बीजेपी के लोग ही सर्वाधिक बिकाऊ क्यों?

(डिसेंट रायपुर के अंक मंगलवार 29 जुलाई से 4 अगस्त 2008 में प्रकाशित)
रायपुर बीजेपी के ही लोग सर्वाधिक बिकाऊ क्यों? संघ को ही सोचना होगी। तात्कालिक लाभ हानि को छोड़ वापस मौलिक प्रमाणिक पारदर्शी और नैतिक हिन्दुत्व की ओर लौटना होगा। यह भी खोजना होगा कि उपरवालों ने नीचे वालों की सुनना क्यों बंद किया? पार्टी में कार्यकर्ताओं की अपेक्षा चापलूसों को महत्व का परिणाम तो नहीं? यह लंबा संदेश एक मोबाईल सेट से दूसरे मोबाईल को भेजा जा रहा है भेजने वाले लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोग है। आमतौर पर संघ के कार्यकर्ता इस तरह के मैसेज भेजने से परहेज करते है लेकिन चौदहवीं लोकसभा में 22 जुलाई 2008 को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बीजेपी के आठ सांसदों के विश्वासघात ने पार्टी से जुड़े लोगों का मत ही गड़बड़ा दिया है। इस कृत्य से मर्माहत हुए लगों की पीड़ा की अभिव्यक्ति को समझा जा सकता है। हालांकि यह पहला अवसर नहीं जब भारतीय जनता पार्टी जो राजनीति में शुचिता का ढिंढोरा पीटकर कीचड़ में कमल खिलाने का दावा करती है उसके सांसद भटके हो। इससे पहले संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लिने के मामले में हुए स्टिंग आपरेशन दुर्योधन में भी भाजपा सांसद फंस चुके है।चौदहवीं लोकसभा के लिए भाजपा के चुनाव चिन्ह कमल से चुनाव लड़कर कुल 138 सांसद फरवरी 2004 में चुने गए थे जो जुलाई 2008 तक घटकर 122 ही रह गए है। सांसद में पार्टी के गिरते हुए ग्राफ ने बीजेपी के बड़े नेताों की नींद उड़ा दी है तो साधारण कार्यकर्ता भी कम हलाकान नहीं है की आखिर नैतिकता और शुचिता का बड़ा बड़ा दावा करने वाली पार्टी के नेताओं का ये कैसा चरित्र उजागार हो रहा है। प्रसंगवश छत्तीसगढ़ भाजपा में घटित इस तरह की कुछ घटनाओं को फिर से याद करना मुनासिब होगा। छत्तीसगढ़ राज्य गठन नवम्बर 2000 के बाद प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने पहला झटका मरवाही विधानसभा के विधायक रामदयाल उइके को विधानसभा से इस्तीफा दिलवाकर स्वंय चुनाव लड़कर दिया। परंपरा यह है कि पार्टी के ही किसी विधायक से इस्तीफा दिलवाकर मनोनीत मुख्यमंत्री जो विधायक नहीं होता है विधानसभा का सदस्य उपचुनाव जीतकर बनता है लेकिन श्री जोगी ने श्री उइके से इस्तीफा दिलवाकर नवगठित छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल ला दिया था इसके बाद भाजपा के ही 12 विधायकों का दलबदल छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा के लिए दूसरा बड़ा झटका था जो उसके सदस्यों की कमजोरी उजागर करता है। श्री जोगी के इन झटकों से भाजपा सन 2003 के पहले विधानसभा में उभरी ही थी कि श्री जोगी ने दूसरे बड़े दल बदल के लिए 45 लाख रुपए की कथित रिश्वत वीरेन्द्र पाण्डेय को देकर बड़े खेल की ब्यूह रचना रची लेकिन केन्द्र में भाजपा सरकार होने की वजह से वे गच्चा खा गए। छोटे से राज्य छत्तीसगढ़ में बीजेपी के विधायकों की इस पाला बदल के पीछे पैसे और मंत्री पद के सौदबाजी के कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं है पर जनता यह मानती है कि यह सब पैसे का खेल था। विधायकों से साथ साथ नगर निगम के महापौर और पंचायतों के सदस्य भी जोगी शासनकाल में पाला बदलते रहे है उस समय भी इस बिकाऊपन को लेकर चिंतन मनन संघ और पार्टी में हुआ था। राजनीति में नैतिकता-पारदर्शिता और जनसेवा का दंभ भरने वाली पार्टी में नेताों के आपसी अंर्तकलह की भी बहुत सी घटनाएं इसे कांग्रेस की बी टीम का दर्जा देती है। बहरहाल 22 जुलाई 2008 को संसद में एक और घटना हुए जिसमें तीन भाजपा सांसदों ने एक करोड़ रुपए के नोट पटल पर रखते हुए नोटों की गुड्डियां लहराकर सनसनी पैदा की। संसद सदस्यों की खरीद फरोख्त का यह पहला मामला नहीं था लेकिन संसद के भीतर हजार-हजार के नोटों की गड्डियां पेश करने की यह अभूतपूर्व घटना थी। ये नोट कैसे आए किसने दिए इस पर विवाद जारी है लेकिन मूल सवाल ये है कि भारतीय जनता पार्टी जो शुचिता का राग अलापती है उसके नेता क्यों बिक रहे है? हर पार्टी का लक्ष्य सत्ता होता है लेकिन कुर्सी के लिए कीचड़ के दाग से सराबोर होना कितना जायज है ये लोक के साथ ही पार्टी के मानस को समझना होगा?छत्तीसगढ़ राज्य गठन के साढ़े सात साल के अंतराल के बाद अब राजनीति का चेहरा मोहरा बदलने लगा है। कांग्रेस और भाजपा में अब थके हुए बेजान और बूढ़े चेंहरों की जगह तेजी से नये चमकदार चेहरे राजनैतिक दंगल में उतर रहे है इन युवा चेहरों का चाल चलन बेहतर है बल्कि जन मुद्दों को गंभीरता से ये नेता समझते है। यह बात अलग है कि पार्टी अनुशासन और बुर्जुग नेताओं की टोका-टाकी से युवा नेता अपने को समेटे हुए है। लेकिन देर सबेर ये आगे बढ़ेंगे। इन नए चेहरों में भाजपा विधायक देवजी पटेल और दुर्ग की महापौर सुश्री सरोज पाण्डेय प्रमुख है। श्री पटेल ने विधानसभा में अपनी सक्रियता से नयी पहचान बनाई तो सुश्री पाण्डेय ने राष्ट्रीय संगठन में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के युवा विधायक नोबेल वर्मा ने भी छ।ग। की राजनीति में पहचान बनाई है तो कांग्रेस विधायक भूपेश बघेल भी मुखर स्वाभाव के चलते चर्चा में है। कांग्रेस के ही छग युवक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष योगेश तिवारी और राजनांदगांव से सांसद चुने गए देवव्रत सिंह की भी चमक बढ़ी है नेतृत्व में परिवर्तन की यह बयार आने वाले विधानसभा चुनाव मेंं भी दिखने की पूरी संभावना है दोनों प्रमुख राजनैतिक दल नए और युवा चेहरों को तवज्जों देंगे ऐसी खबर है भाजपा में तो 14 विधायकों की जिसमें कई मंत्री भी शामिल है टिकट कटने की खबरें है वहीं कांग्रेस में भी हारे हुए लोगों को पुन: अवसर नहीं देने के समाचार है। पिछले चुनाव में दस हजार से भी ज्यादा वोटों से हारे कांग्रेस प्रत्याशियों को पुन: टिकट नहीं देने का निर्णय पार्टी आलाकमान ने लिया है इसमें कुछ अपवाद भले ही हो सकते है पर ज्यादातर दस हजारियों को मायूस होना पड़ेगा। बहुजन समाज पार्टी ने प्रत्याशियों की जो सूची जारी की है उसमें भी ज्यादातर युवा लोग है तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी ने लोगों को अवसर प्रदान करना चाहती है। घिसे पिटे चेहरों से तंग जनता भी बदलाव चाहती है सो उम्मीद है कि छग की तीसरी विधानसभा में नए चेहरा बदलने के साथ ही रीति नीति में भी परिवर्तन होना चाहिए ताकि जनता का भला हो सके।

सबको ठिकाने लगाया रमन ने

(छत्तीसगढ़ की सत्ता अंक-49, 26 मई से 8 जून 2008 को प्रकाशित)
0 बीजेपी में करिशमाई नेता बनने के साथ ही बागडोर उनके हाथो में
बहुतों को यह बात बुरी लग सकती है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में अव्वल स्थान बना लिया है। पिछले साढ़े चार साल के मुख्य मंत्रित्व काल में उनकी बहुत बड़ी उपलब्धियां भले की ज्यादा ना हो पर उन्होंने सत्ता और संगठन को साधने का करिश्मा तो दिखाया ही दिया है। उनकी ही पार्टी के विरोधी यह कहकर खीझ मिटा सकते है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए संतुलन साधना कौन सी बड़ी कला है तो सवाल यही है कि फिर मध्यप्रदेश में चार-चार मुख्यमंत्री क्यों बदल गए और डॉ. रमन सिंह से ज्यादा मीडिया में लोकप्रिय नेता आखिर क्यों अपने कार्यकाल में सफल नहीं रह सके? छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह ने जिस चुपचाप शैली में अपने विरोधियों को उनके ही दांव से चित्त किया है उससे राजनीति के गलियारों के जानकार भी अभिभूत है और इतने लंबे समय तक प्रदेश को संभाल लेना करिश्मा ही मान रहे है। हालांकि डॉ. रमन सिंह के दामन मेंं कोटा विधानसभा और राजनांदगांव लोकसभा उपचुनाव में पराजय का दाग है पर उसके बाद हुए खैरागढ़, मालखरौदा और केशकाल विधानसभा चुनाव में पुन: बाजी पलटने का दम भी दिख गया है। सन् 2008 आम विधानसभा चुनाव की पूर्व बेला पर डॉ. रमन सिहं ने छत्तीसगढ़ विकास यात्रा के माध्यम से यह बता दिया है कि आगामी इलेक्शन में वे ही टिकट का बंटवारा करेंगे। सत्ता और संगठन मेंं उनकी ही चलेगी बाकी क्षत्रयों को डॉ. रमन सिंह के ताल से ताल मिलाना होगा या फिर मुंह की खानी पड़ेगी। याद दिलाना लाजमी होगा कि बीजेपी में संगठन का फैसला ही सर्वमान्य होता है और आज संगठन डॉ. रमन सिंह के साथ खड़ा है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के समय डॉ. रमन सिंह कवर्धा जिले तक सीमित थे और 1998 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद 1999 में लोकसभा चुनाव जीतकर केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में राज्यमंत्री बनकर वे बहुत जल्दी ही राजनैतिक गर्दिश से बाहर आ चुके थे। लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण वर्ष 2000 से लेकर 2003 तक वे हाशिए पर ही थे। 2003 में ही उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देकर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान मजबूरी में संभालनी पड़ी थी। इसी कमान संभालने का प्रतिफल उन्हें छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के रूप में मिला। मुख्यमंत्री पद के अन्य दावेदार सांसद रमेश बैस, नंदकुमार साय को पछाडऩे के बाद जल्दी ही उन्हें इंडिया टुडे ने अव्वल मुख्यमंत्री का खिताब देकर ऊंचाई प्रदान की। लेकिन विश्वस्त सहयोगी तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष शिवप्रताप सिंह और मंत्री ननकीराम कंवर के साथ उनकी खींचतान के साथ ही आदिवासी नेताओं की समय- समय पर एक जुटता से वे हलाकान रहे। सहयोगी मंत्रियों से आंतरिक मतभेद भी उन्हेें खासे परेशान करते रहे लेकिन डॉ. सिंह ने तमाम बाधाओं को पार करके अपना ऐतिहासिक कार्यकाल पूरा किया है। छत्तीसगढ़ राज्य की पारी भले ही ढीली हो पर सन् 2008 से पहले तक डॉ. रमन सिंह की राजनीतिक सभी बड़े लीडरों को ठिकाने लगा दिया है। इस साल की शुरूआत में ही प्रदेश के सभी गरीबों को तीन रुपये किलो चांवल की योजना लागू कर दिल्ली तक अपनी परिकल्पना की प्रशंसा बटोर ली है। प्रदेश में अब तक की सबसे बड़ी योजना ने विरोधी राजनीतिक दल कांग्रेस के साथ ही पार्टी के अंदरूनी विरोधियों की चालों को विराम लगा दिया है। पिछले पांच महीनों से डॉ. रमन सिंह एक के बाद एक मुहिम में जुटे है और आत्म विश्वास के साथ पारी खेल रहे है कि अगले पांच साल फिर से सत्ता की बागडोर उनके हाथों में रहे। बहरहाल आज राजनीति के जानकार यह कहने लगे है कि डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश भाजपा के साथ ही कांग्रेस के धुरंधरों को भी हाशिये पर रख दिया है और फिलहाल तो उनके सितारें बुलंदी पर है और उनके विजय रथ को रोकना बेहद मुश्किल है।

Friday, June 12, 2009

क्या छत्तीसगढिय़ावाद मुद्दा बनेगा

महाराष्ट्र में मराठा क्षत्रपों द्वारा क्षेत्रवाद को लेकर जिस तरह की गतिविधियां चल रही है और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे को जो लोकप्रियता मीडिया प्रदान कर रहा है उससे छत्तीसगढिय़ावाद को लेकर खुसुर-फुसुर शुरू हो गई है। आपसी बातचीत में ये मुद्दा चर्चा का विषय है कि इस पिछड़े राज्य में बीती कुछ शताब्दियों से रह रहे पिछड़े साहू, कुर्मी और दलित सतनामियों का शोषण गत् पचास साल में आए आगड़े लोग कर रहे है। आर्थिक शोषण के अलावा अन्य मुद्दों को लेकर भी इन वर्गों पर ताना कसा जाता है। यहां यह बताना लाजमी होगा कि छत्तीसगढ़ के पिछड़े - दलितों की तासीर सद्भाव की है और यहां के लोग बेहद धैर्यवान और सहनशील होते है। सीधे-सरल छत्तीसगढिय़ों द्वारा तानों का जवाब नहीं दिए जाने से भी अगड़े वर्ग के कुछ लोगों द्वारा सामंतशाही तौर तरीकों के इस्तेमाल से जहां मानवीय होने पर सवाल खड़ा होने लगा है वहीं स्वाभिमान की भावना में भी उबाल आने लगा है। इस चिंगारी को पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र की ज्वाला ने धीरे-धीरे सुलगाने का काम शुरू कर दिया है। इसी परिपेक्ष्य में प्रश्न यह भी उठाया जा रहा है कि क्यों नहीं छत्तीसगढिय़ा और परदेशिया के मुद्दे को हवा दी जाए? हाल ही में समपन्न हुए लोकसभा चुनाव में दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी से बर्खास्त पूर्व सांसद तारा चंद साहू ने इस मुद्दे के आधार पर चुनाव लड़ा उन्हें अब तक किसी भी निर्दलीय को मिले वोटों के आधार पर सर्वाधिक दो लाख बासठ हजार मत मिले जो कि रिकार्ड है। इससे यह मुद्दा फिर से चर्चा में है।छत्तीसगढ़ को आदिवासियों का गढ़ भी कहा जाता है। यहां कुल आबादी में लगभग आधी जनसंख्या वनों में रहने वाले वनवासियों की है। इन आदिवासियों के शोषण का भी आरोप तथाकथित अगड़े और कुछ सालों से राज्य में आए जैन, अग्रवाल, मारवाडिय़ों पर लगता रहा है। आर्थिक, शारीरिक और सामाजिक रूप से दोयम दर्जे पर रह रहे छत्तीसगढिय़ों को न तो रोजगार में कोई सुविधा मिलती है और ना ही राजनीति में उन्हें विशेष महात्व मिलता है। सरकार की योजनाओं से भी आदिवासी-साहू-सतनामी और कुर्मी समुदाय के लोगों का कल्याण नहीं हो सका है। करीब अस्सी फीसदी इस आबादी को मात्र बीस प्रतिशत अगड़ों के वर्चस्व का सामना हर स्तर पर करना पड़ता है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पीछे एक वजह यह भी थी कि इस अंचल के पिछड़े-आदिवासी वर्ग का विकास नहीं हो रहा था। इन वर्गों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए ही कांग्रेस के नेता स्वर्गीय चंदूलाल चंद्राकर तमाम विरोधियों के बाद भी अलग राज्य के पक्षधर बने रहे। तब अंचल की राजनीति में दबदबा रखने वाले स्व. श्यामाचरण शुक्ल और विद्याचरण शुक्ल राज्य पुर्नगठन आयोग की बात कहते रहे। राज्य बनने के साथ ही कांग्रेस के मुख्यमंत्री अजीत जोगी को अपनी ही पार्टी के नेताओं का मुखर विरोध सहना पड़ा लेकिन उन्होंने छत्तीसगढिय़ावाद का भरपूर पोषण कर तब उस मुद्दे को संभाल लिया। छत्तीसगढ़ी में भाषण की उनकी अनूठी शैली और पिछड़ों को राजनीति में आगे बढ़ाने के लिए लामबंदी के प्रयास से श्री जोगी ने छत्तीसगढिय़ा स्वाभिमान की रक्षा की और अस्मिता को नयी पहचान दी। लेकिन दुर्भाग्यजनक परिस्थितियों ने इस मॉस लीडर को अपना शिकार बना लिया और वे राजनीति में उनके दामन में कई दाग लगा लिए। भारतीय जनता पार्टी की सरकार प्रदेश में सत्तारुढ़ होने के बाद छत्तीसगढिय़ावाद की पूरा हवा निकाल गई और आदिवासी और पिछड़े वर्ग के सभी बड़े नाते हाशिए पर चले गए। बीजेपी की राजनीति में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने संगठन का साथ लेकर आदिवासी वर्ग के नंदकुमार साय, शिवप्रताप सिंह, रामविचार नेताम और ननकीराम कंवर की महत्वकांक्षाओं को और पिछड़े वर्ग के रमेश बैस, ताराचंद साहू और चंद्रशेखर साहू की अपेक्षाओं पर नकेल कसकर स्थनीय और बाहरी के मुद्दे पर पानी फेर दिया। लेकिन भाजपा को इस बात का पूरा अहसास था कि चुनाव में बनिया-जैनों को तवज्जों दी गई तो छत्तीसगढ़ी लोग तरजीह नहीं देंगे सो सन् 2009 के विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में नए पिछड़े वर्ग के प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर सामाजिक समीकरण के अनुरूप जीतने की रणनीति बनाई। प्रथम पंक्ति के स्थान पर दूसरी पंक्ति के स्थान पर दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे बढ़ाने की नीति बीजेपी में हमेशा सफल रही है और इसी वजह से संगठन मजबूत रहा है।बहरहाल छत्तीसगढिय़ा और परदेशिया वाद का मुद्दा हाल ही में सम्पन्न हुए विधानसभा और लोक सभा चुनाव में धीरे-धीरे सुलगा। पर इसे प्रज्वलित करने के लिए राज ठाकरे जैसे व्यक्तित्व की जरूरत है। बीजेपी से बर्खास्त पूर्व सांसद ताराचंद साहू कांग्रेस नेता भूपेश बघेल, संत पवन दीवान, सांसद बलिराम कश्यप में ये ताब है कि वे छत्तीसगढ़ी अस्मिता के लिए संघर्ष कर नेतृत्व संभाल सकते थे इसमें बलीराम कश्यप बीमार हो गए तो पवन दीवान की इच्छाशक्ति खत्म हो गई है। मात्र भूपेश बघेल और ताराचंद साहू ही में कुछ शक्ति बची हुई है कि इस मुहिम के अगवा बन सके। इस मुद्दे के नेतृत्वकर्ता की तलाश में समय जुटा है। अब कौन इसकी मशाल को थामता है उसकी प्रतीक्षा है?

Tuesday, June 9, 2009

जय छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ - दो दशक की राजनीति
बहुत कुछ लिखा जा चुका है और लिखा जा रहा है। ऐसे दौर में च्च्जय छत्तीसगढ़ ज्ज् लिखना का क्या औचित्य? ये सवाल सबसे पहले जेहन में आया। आखिर क्या हासिल होगा पाठकों को और राजनीति के क्षेत्र में जुटे लोगों को? इसका जवाब मिला तो हौसला बढ़ा। उत्तर था कि सन् 1991 से लेकर सन् 2009 की प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में कार्य के दौरान लाखों लोगों से जो मिलने का अवसर मिला और हजारों व्यक्तियों के विचारों से रूबरू हुआ उनके दृष्टिकोण, अनुभवों के बाद जो दृष्टि मिली वह रेखांकित की जाए जो इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को नया विजन मिलेगा। वहीें इस दौरान के नेताओं के व्यक्तित्व को समझने और उनके कार्यों को स्मृति में संजोने का भी यह पुस्तक माध्यम बनेगी ये विश्वास हुआ बस फिर क्या था, लिखना शुरू कर दिया। पिछले दो दश्क में राजनीति क्रियाकलापों में भी भारी उलटफेर हुआ है। पहले लोग धरना प्रदर्शन के लिए हमे उत्सुक रहते थे लेकिन अब धरना प्रदर्शन की राजनीति समाप्ति के दौर पर है। पहले पार्षद लोगों के घर-घर जाकर उनकी समस्याएं सुनते थे अब लोग पार्षद से लेकर विधायक और सांसद के निवास पर चक्कर लगाते है। पहले राजनेता धंधे और व्यावसाय के कार्य को अच्छा नहीं मानते थे लेकिन अब राजनीति व्यवसाय और धंधा बन गई है। दो दशक में हुए इस आमूल चूल परिवर्तन के साथ ही अब नेता शब्द सम्मान का पर्याय नहीं रह गया है।सबसे महत्वपूर्ण बात समझ में आई कि जीवन की तरह राजनीति भी अबूझ पहेली है जो तय मानकों पर सफल नहीं होती परन्तु जिंदगी में जिस तरह कुछ बातें निर्धारित होती है उसी तरह राजनीति में भी कुछ तय चीजेंं मार्गदर्शन करती है। मसलन हर नये दिन में कुछ ना कुछ नया घटित होता है और किसी का भी जीवन एक ढर्रे पर नहीं चलता। ऐसा होता तो जीवन नीरस हो जाता सो राजनीति में भी नयी-नयी घटनाएं होती रहती है और उसके अपने फलतार्थ होते है। जिस तरह संघर्ष जीवन में सफलता देता है उसी तरह राजनीति में भी देर सबेर सफलता मिलती है। राजनीति में सरलता, सौम्यता, लोकप्रियता प्रदान करती है तो ईष्र्या और टांग खिचाई की प्रवृति बहुत ज्यादा सफलता नहीं प्रदान करती। और सबसे बड़ी बात की सत्ता के पद पर अहंकारी हुए नेताों की ताकत को जनता ने हमेशा परास्त किया है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिगविजय सिंह और छत्तीसगढ़ के वर्तमान मुख्यमंत्र डॉ. रमन सिंह व्यवहार कुशलता की वजह से ही राजनीति में अपनी अलग पहचान कायम किया हुए है। तो विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी, तरुण चटर्जी, प्रेमप्रकाश पाण्डेय और अजय चंद्राकर को सत्ता के पॉवर ने जब-जब मदहोश किया तब-तब जनता ने झटका दिया। सन् 1977 में वीसी शुक्ल का घमंड टूटा तो सन् 2003 में अजीत जोगी व तरुण चटर्जी का और सन् 2008 में श्री पाण्डेय और श्री चंद्राकर का। इन शीर्ष नेताओं के अलावा सूची में बहुत से नाम हो सकते है। यहां जीवन दर्शन का एक सूत्र याद आता है कि अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे है लेकिन उसके अच्छे के लिए केवल सोच रहे तो आपका भला भगवान करेगा वहीं आपने किसी का बुरा नहीं किया पर बुरा सोचा तो उसका फल आपको जरूर मिलेगा। डॉ. रमन सिंह ने पिछले पांच साल के कार्यकाल के दौरन चार साल तक उल्लेखनीय कुछ नहीं किया जो उनके कार्यकाल की उपलब्धी होती परन्तु चुनाव से 11 माह पूर्व 16 जनवरी 2008 में गरीबों को तीन रुपए किलों चांवल देने की योजना लागू कर विपन्न जनता के के हित को सोचा। इस योजना में बहुत कुछ बहस की गुंजाइश है लेकिन इस लोक कल्याणकारी कार्य के आगे बहुत से मुद्दे विधानसभा चुनाव 2008 में गौण हो गए और भारतीय जनता पार्टी की सत्ता में वापसी हुई।बहरहाल सन् 1993 के विधानसभा चुनाव के बाद से सन् 2009 तक हुए विधानसभा- लोकसभा चुनावों की उठापटक और चर्चित घटनाओं की राजनीति अखबारी कतरनों के माध्यम से इस किताब में शामिल किया गया है। इस पुस्तक में समाचार पत्रों की कतरनें सम्मलित करने के पीछे उद्देश्य यहीं है कि उसकी विश्वसनीयता बनी रहे। घटनाओं पर अलग-अलग लोगों का दृष्टिकोण भिन्न हो सकता है इससे मतभेद नहीं। लोकतंत्र में अपनी बात रखने की स्वतंत्रता सबको है पर यह तथयपरक और तर्कसंगत होनी चाहिए। कुतर्क का जवाब दिया जा सकता है। विघ्न असंतोषी राजनीति में हाशिए पर चले जाते है इसी तर्ज पर विरोध की राजनीति हमेशा फायदेमंद नहीं होती। राज्य और जनता के हित में शुरू हुई योजना का स्वागत भले ही ना किया जाए पर विरोध भी नहीं किया जाना चाहिए। विवेचनाओं पर भी उंगली उठेगी, यह स्वभाविक भी है क्योंकि कुछ लोगों को टिप्पणी नहीं पचेगी। लेकिन समय की धारा में उनके कर्म की रेखाएं जो समाचार पत्रों में रच गई है उसे कैसे मिटाया जा सकता है।सो छत्तीसगढ़ की दो दशक की राजनीति पृथक आंदोलन से लेकर छत्तीसगढ़ के गठन और उसके बाद हुए विधानसभा लोकसभा चुनाव की महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ ही राज-काज के दौरान विशेष घटनाक्रम से प्रस्तुत कर रहा है। अच्छी बुरी प्रतिक्रिया सबका स्वागत है क्योंकि ये टिप्पणियां ऊर्जा देती है नए रचनाकर्म को।

Friday, May 29, 2009

छत्तीसगढ़- राजनीति

छत्तीसगढ़-फूल ऑफ़ सरप्राइज सूत्रवाक्य का इस्तेमाल छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल ने अपने लोगों के लिए किया है। इसमे कोई दो राय नही छत्तीसगढ़ आश्चर्यों से युक्त है। आदिम जाति की परंपराओ को सँजोकर रखे इस प्रदेश में आधे से ज़्यादा आबादी आदीवासियो की है। बड़ी संख्या होने के बाद भी वनवासी राजनीति में हाशिये पर ही है। जब-तब यहाँ आदिवासी मुख्या मंत्री की बात होती रहती है और कभी-कभी इस वर्ग के नेता एकजुट होने का प्रयास भी करते है पर सत्ता की बागडोर जिनके हाथों में है वे इस वर्ग का प्रतिनिधित्व नही करते सो आदिवासी एक्सप्रेस पर ब्रेक लग जाती है। बावजूद इसके इस वर्ग का छत्तीसगढ़ की राजनीति में बड़ा दखल है। आदिवासी लीडरशिप की उपेक्षा करने से कांग्रेस को यहाँ बेहद नुक्सान उठाना पड़ा है। सन् २००८ के विधानसभा चुनाव और २००९ के लोकसभा चुनावो में कांग्रेस को अपेक्षित सफलता नही मिलने की अहम् वजह इस वर्ग के नेताओ को आगे नही बढ़ाना ही कहा जा सकता है।
यहाँ यह बात याद दिला दे की कभी छत्तीसगढ़ को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था। और इसमे कोई दो राय नही की कांग्रेस की जड़े यहाँ बेहद मजबूत है और बहुत ज्यदा प्रयास किए बिना यहाँ पार्टी को अच्छे मत मिलते है। सन् २००३ में कांग्रेस यहाँ डेढ़ प्रतिशत मतों के अन्तर से सत्ता से हाथ धो बैठी थी तो २००८ में कांग्रेस के लिए बेहतर अवसर था की वह सत्ता में वापस आ सकती थी लेकिन बड़े नेताओं की आपसी गुटबाजी ने नैय्या डुबो दी।
यहाँ इस बात को भी रेखांकित करना उचित होगा की कांग्रेस को कांग्रेसी ही हराते है। सन् २००३ के चुनाव में कांग्रेस को यहाँ ६५-७० सीटें मिलने का अनुमान था उस दौरान कांग्रेस के वरिष्ट नेता विद्या चरण शुक्ल की बगावत और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों को मिले करीब सात प्रतिशत वोटों ने समीकरण बिगाड़ दिया। ये वोट कांग्रेस के ही थे। इसके अलावा इस बात के पुख्ता सबूत भले ही ना हो परन्तु इससे इनकार भी नही किया जा सकता की तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने करीब सात से भी ज्यादा अपनी ही पार्टी के कथित विरोधी उम्मीदवारों को हरवाने के लिए सहयोग प्रदान किया।
सन् २००३ के बाद सन् २००४ के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बहुत बुरी गत हो गई। प्रदेश ११ लोकसभा सीटों में से मात्र एक पर ही महासमुंद से अजित जोगी ने अपने प्रतिद्वन्दी भरतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी विद्या चरण शुक्ल को हराकर पार्टी की लाज रख ली। इसी दौरान अजित जोगी दुर्घटना में अपंग हो गये और कांग्रेस भी पुरी तरह मरणासन्न हो गई। उसी दौरान श्री जोगी के विरोधी आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा को अवसर मिल गया नेतृत्व का। श्री कर्मा को कांग्रेस आलाकमान ने भले ही विधानसभा नेता प्रतिपक्ष से नवाज़ दिया लेकिन वे जोगी खेमे के विधायको का कभी भी समर्थन नही जुटा पाए। ३७ में से ३४ विधायक उनके विरोधी रहे तो श्री कर्मा और उपनेता भूपेश बघेल ने अपनी राजनीति को मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की छात्र छाया में पल्लवित करने की रणनीति पर अमल किया।
इससे कांग्रेस बहुत बुरी स्थिति पर पहुंच गई। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के लिए ये बहुत फायदेमंद साबित हुआ और उन्होंने शैन: शैन: अपनी जड़े जमा ली। मई 2004 से फरवरी 2007 तक श्री जोगी बिस्तर पर रहे उसी दौरान कोटा विधायक पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल का निधन हो गया तब कोटा विधानसभा के उपचुनाव हुए और वहां से श्री जोगी की पत्नी डॉ. रेणू जोगी उम्मीदवार बनाई गर्ई। अमूमन उपचुनावों में सत्तारुढ़ दल का उम्मीदवार ही चुनाव जीतता है। लेकिन कोटा उपचुनाव में डॉ. रेणु जोगी का शानदार जीत से डॉ. रमन सिंह को भारी झटका लगा।सन् 2007 डॉ. रमन सिंह के लिए बहुत भारी साबित हुआ। संसद में पैसा लेकर सवाल पूछने के आरोप में उनके खास समर्थक राजनांदगांव के सांसद प्रदीप गांधी फंस गए तो उनकी बेहद किरकिरी हुई वहीं संसद से बर्खास्तगी के बाद उपचुनाव में राजनांदगांव लोकसभा में बीजेपी की हार से डॉ. रमन सिंह का ग्राफ रसातल पर चला गया। पार्टी में उन्हें हटाकर किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की बातें होने लगी लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से उनके मधुर सम्बंधों में बचा लिया। इस दौरान डॉ सिंह को एक ओर श्री जोगी की वापसी के बाद तीखे शब्दबाणों को झेलना पड़ा तो दूसरी ओर पार्टी मेें ही उनके विरोधी पैदा हो गए। ऐसे समय में उन्हें तीन रुपए किलो में 35 किलो चांवल हर गरीब परिवार को देने की योजना जोर-शोर से लागू कर स्थिति काबू में की और 2008 के विधनसभा चुनाव से पूर्व छत्तीसगढ़ विकास यात्रा के माध्यम से पूरे प्रदेश की खाक छान ली। दरअसल ये दोनों उपक्रमों के अलावा चुनाव मैनेजमेंट ने भारतीय जनता पार्टी को सन् 2008 के विधानसभा चुनावों में पुन: 50 सीटों पर जीत दिला दी वहीं कांग्रेस की गुटबाजी से एक बार फिर बाजी हाथ से निकल गई। सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में पुन: 2004 का इतिहास दुहराया गया। बीजेपी को दस तो कांग्रेस को पुन: एक सीट कोरबा से डॉ. चरणदास महंत की मिली। बिलासपुर से डॉ. रेणु जोगी मात्र बीस हजार वोटों से हारी तो दुर्ग से सरोज पाण्डेय नौ हजार से कुछ ज्यादा वोटों से जीत पाई। दुर्ग में छत्तीसगढ़वाद के मुद्दे पुर चुनाव लडऩे वाले ताराचंद साहू भले ही हार गए हों पर किसी निर्दलीय को लेकसभा चुनाव में करीब दो लाख बासठ हजार वोट मिलना रिकार्ड ही है। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की तरह छत्तीसगढय़ावाद और आदिवासी नेतृत्व दो बड़े मुद्दों पर चर्चा जारी रहेगी तो बस्तर में नक्सलवाद की समस्या तो सरगुजा ेमं धर्मान्तरण राजनीति का बड़ा विषय समस्या हल तक बना रहेगा।