Saturday, June 13, 2009

सबको ठिकाने लगाया रमन ने

(छत्तीसगढ़ की सत्ता अंक-49, 26 मई से 8 जून 2008 को प्रकाशित)
0 बीजेपी में करिशमाई नेता बनने के साथ ही बागडोर उनके हाथो में
बहुतों को यह बात बुरी लग सकती है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में अव्वल स्थान बना लिया है। पिछले साढ़े चार साल के मुख्य मंत्रित्व काल में उनकी बहुत बड़ी उपलब्धियां भले की ज्यादा ना हो पर उन्होंने सत्ता और संगठन को साधने का करिश्मा तो दिखाया ही दिया है। उनकी ही पार्टी के विरोधी यह कहकर खीझ मिटा सकते है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए संतुलन साधना कौन सी बड़ी कला है तो सवाल यही है कि फिर मध्यप्रदेश में चार-चार मुख्यमंत्री क्यों बदल गए और डॉ. रमन सिंह से ज्यादा मीडिया में लोकप्रिय नेता आखिर क्यों अपने कार्यकाल में सफल नहीं रह सके? छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह ने जिस चुपचाप शैली में अपने विरोधियों को उनके ही दांव से चित्त किया है उससे राजनीति के गलियारों के जानकार भी अभिभूत है और इतने लंबे समय तक प्रदेश को संभाल लेना करिश्मा ही मान रहे है। हालांकि डॉ. रमन सिंह के दामन मेंं कोटा विधानसभा और राजनांदगांव लोकसभा उपचुनाव में पराजय का दाग है पर उसके बाद हुए खैरागढ़, मालखरौदा और केशकाल विधानसभा चुनाव में पुन: बाजी पलटने का दम भी दिख गया है। सन् 2008 आम विधानसभा चुनाव की पूर्व बेला पर डॉ. रमन सिहं ने छत्तीसगढ़ विकास यात्रा के माध्यम से यह बता दिया है कि आगामी इलेक्शन में वे ही टिकट का बंटवारा करेंगे। सत्ता और संगठन मेंं उनकी ही चलेगी बाकी क्षत्रयों को डॉ. रमन सिंह के ताल से ताल मिलाना होगा या फिर मुंह की खानी पड़ेगी। याद दिलाना लाजमी होगा कि बीजेपी में संगठन का फैसला ही सर्वमान्य होता है और आज संगठन डॉ. रमन सिंह के साथ खड़ा है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के समय डॉ. रमन सिंह कवर्धा जिले तक सीमित थे और 1998 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद 1999 में लोकसभा चुनाव जीतकर केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में राज्यमंत्री बनकर वे बहुत जल्दी ही राजनैतिक गर्दिश से बाहर आ चुके थे। लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण वर्ष 2000 से लेकर 2003 तक वे हाशिए पर ही थे। 2003 में ही उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देकर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान मजबूरी में संभालनी पड़ी थी। इसी कमान संभालने का प्रतिफल उन्हें छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के रूप में मिला। मुख्यमंत्री पद के अन्य दावेदार सांसद रमेश बैस, नंदकुमार साय को पछाडऩे के बाद जल्दी ही उन्हें इंडिया टुडे ने अव्वल मुख्यमंत्री का खिताब देकर ऊंचाई प्रदान की। लेकिन विश्वस्त सहयोगी तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष शिवप्रताप सिंह और मंत्री ननकीराम कंवर के साथ उनकी खींचतान के साथ ही आदिवासी नेताओं की समय- समय पर एक जुटता से वे हलाकान रहे। सहयोगी मंत्रियों से आंतरिक मतभेद भी उन्हेें खासे परेशान करते रहे लेकिन डॉ. सिंह ने तमाम बाधाओं को पार करके अपना ऐतिहासिक कार्यकाल पूरा किया है। छत्तीसगढ़ राज्य की पारी भले ही ढीली हो पर सन् 2008 से पहले तक डॉ. रमन सिंह की राजनीतिक सभी बड़े लीडरों को ठिकाने लगा दिया है। इस साल की शुरूआत में ही प्रदेश के सभी गरीबों को तीन रुपये किलो चांवल की योजना लागू कर दिल्ली तक अपनी परिकल्पना की प्रशंसा बटोर ली है। प्रदेश में अब तक की सबसे बड़ी योजना ने विरोधी राजनीतिक दल कांग्रेस के साथ ही पार्टी के अंदरूनी विरोधियों की चालों को विराम लगा दिया है। पिछले पांच महीनों से डॉ. रमन सिंह एक के बाद एक मुहिम में जुटे है और आत्म विश्वास के साथ पारी खेल रहे है कि अगले पांच साल फिर से सत्ता की बागडोर उनके हाथों में रहे। बहरहाल आज राजनीति के जानकार यह कहने लगे है कि डॉ. रमन सिंह ने प्रदेश भाजपा के साथ ही कांग्रेस के धुरंधरों को भी हाशिये पर रख दिया है और फिलहाल तो उनके सितारें बुलंदी पर है और उनके विजय रथ को रोकना बेहद मुश्किल है।

1 comment:

  1. रमण सिंग जी को बधाई......

    पर एक बात समझ मे नही आती की वे नक्सल मूव्मेंट को समाप्त करने मे विफल क्यो है?

    काश वे इस बुराई को समाप्त कर भारत को बचा पाते......

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