Friday, May 29, 2009

छत्तीसगढ़- राजनीति

छत्तीसगढ़-फूल ऑफ़ सरप्राइज सूत्रवाक्य का इस्तेमाल छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल ने अपने लोगों के लिए किया है। इसमे कोई दो राय नही छत्तीसगढ़ आश्चर्यों से युक्त है। आदिम जाति की परंपराओ को सँजोकर रखे इस प्रदेश में आधे से ज़्यादा आबादी आदीवासियो की है। बड़ी संख्या होने के बाद भी वनवासी राजनीति में हाशिये पर ही है। जब-तब यहाँ आदिवासी मुख्या मंत्री की बात होती रहती है और कभी-कभी इस वर्ग के नेता एकजुट होने का प्रयास भी करते है पर सत्ता की बागडोर जिनके हाथों में है वे इस वर्ग का प्रतिनिधित्व नही करते सो आदिवासी एक्सप्रेस पर ब्रेक लग जाती है। बावजूद इसके इस वर्ग का छत्तीसगढ़ की राजनीति में बड़ा दखल है। आदिवासी लीडरशिप की उपेक्षा करने से कांग्रेस को यहाँ बेहद नुक्सान उठाना पड़ा है। सन् २००८ के विधानसभा चुनाव और २००९ के लोकसभा चुनावो में कांग्रेस को अपेक्षित सफलता नही मिलने की अहम् वजह इस वर्ग के नेताओ को आगे नही बढ़ाना ही कहा जा सकता है।
यहाँ यह बात याद दिला दे की कभी छत्तीसगढ़ को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था। और इसमे कोई दो राय नही की कांग्रेस की जड़े यहाँ बेहद मजबूत है और बहुत ज्यदा प्रयास किए बिना यहाँ पार्टी को अच्छे मत मिलते है। सन् २००३ में कांग्रेस यहाँ डेढ़ प्रतिशत मतों के अन्तर से सत्ता से हाथ धो बैठी थी तो २००८ में कांग्रेस के लिए बेहतर अवसर था की वह सत्ता में वापस आ सकती थी लेकिन बड़े नेताओं की आपसी गुटबाजी ने नैय्या डुबो दी।
यहाँ इस बात को भी रेखांकित करना उचित होगा की कांग्रेस को कांग्रेसी ही हराते है। सन् २००३ के चुनाव में कांग्रेस को यहाँ ६५-७० सीटें मिलने का अनुमान था उस दौरान कांग्रेस के वरिष्ट नेता विद्या चरण शुक्ल की बगावत और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों को मिले करीब सात प्रतिशत वोटों ने समीकरण बिगाड़ दिया। ये वोट कांग्रेस के ही थे। इसके अलावा इस बात के पुख्ता सबूत भले ही ना हो परन्तु इससे इनकार भी नही किया जा सकता की तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने करीब सात से भी ज्यादा अपनी ही पार्टी के कथित विरोधी उम्मीदवारों को हरवाने के लिए सहयोग प्रदान किया।
सन् २००३ के बाद सन् २००४ के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बहुत बुरी गत हो गई। प्रदेश ११ लोकसभा सीटों में से मात्र एक पर ही महासमुंद से अजित जोगी ने अपने प्रतिद्वन्दी भरतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी विद्या चरण शुक्ल को हराकर पार्टी की लाज रख ली। इसी दौरान अजित जोगी दुर्घटना में अपंग हो गये और कांग्रेस भी पुरी तरह मरणासन्न हो गई। उसी दौरान श्री जोगी के विरोधी आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा को अवसर मिल गया नेतृत्व का। श्री कर्मा को कांग्रेस आलाकमान ने भले ही विधानसभा नेता प्रतिपक्ष से नवाज़ दिया लेकिन वे जोगी खेमे के विधायको का कभी भी समर्थन नही जुटा पाए। ३७ में से ३४ विधायक उनके विरोधी रहे तो श्री कर्मा और उपनेता भूपेश बघेल ने अपनी राजनीति को मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की छात्र छाया में पल्लवित करने की रणनीति पर अमल किया।
इससे कांग्रेस बहुत बुरी स्थिति पर पहुंच गई। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के लिए ये बहुत फायदेमंद साबित हुआ और उन्होंने शैन: शैन: अपनी जड़े जमा ली। मई 2004 से फरवरी 2007 तक श्री जोगी बिस्तर पर रहे उसी दौरान कोटा विधायक पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल का निधन हो गया तब कोटा विधानसभा के उपचुनाव हुए और वहां से श्री जोगी की पत्नी डॉ. रेणू जोगी उम्मीदवार बनाई गर्ई। अमूमन उपचुनावों में सत्तारुढ़ दल का उम्मीदवार ही चुनाव जीतता है। लेकिन कोटा उपचुनाव में डॉ. रेणु जोगी का शानदार जीत से डॉ. रमन सिंह को भारी झटका लगा।सन् 2007 डॉ. रमन सिंह के लिए बहुत भारी साबित हुआ। संसद में पैसा लेकर सवाल पूछने के आरोप में उनके खास समर्थक राजनांदगांव के सांसद प्रदीप गांधी फंस गए तो उनकी बेहद किरकिरी हुई वहीं संसद से बर्खास्तगी के बाद उपचुनाव में राजनांदगांव लोकसभा में बीजेपी की हार से डॉ. रमन सिंह का ग्राफ रसातल पर चला गया। पार्टी में उन्हें हटाकर किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की बातें होने लगी लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से उनके मधुर सम्बंधों में बचा लिया। इस दौरान डॉ सिंह को एक ओर श्री जोगी की वापसी के बाद तीखे शब्दबाणों को झेलना पड़ा तो दूसरी ओर पार्टी मेें ही उनके विरोधी पैदा हो गए। ऐसे समय में उन्हें तीन रुपए किलो में 35 किलो चांवल हर गरीब परिवार को देने की योजना जोर-शोर से लागू कर स्थिति काबू में की और 2008 के विधनसभा चुनाव से पूर्व छत्तीसगढ़ विकास यात्रा के माध्यम से पूरे प्रदेश की खाक छान ली। दरअसल ये दोनों उपक्रमों के अलावा चुनाव मैनेजमेंट ने भारतीय जनता पार्टी को सन् 2008 के विधानसभा चुनावों में पुन: 50 सीटों पर जीत दिला दी वहीं कांग्रेस की गुटबाजी से एक बार फिर बाजी हाथ से निकल गई। सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में पुन: 2004 का इतिहास दुहराया गया। बीजेपी को दस तो कांग्रेस को पुन: एक सीट कोरबा से डॉ. चरणदास महंत की मिली। बिलासपुर से डॉ. रेणु जोगी मात्र बीस हजार वोटों से हारी तो दुर्ग से सरोज पाण्डेय नौ हजार से कुछ ज्यादा वोटों से जीत पाई। दुर्ग में छत्तीसगढ़वाद के मुद्दे पुर चुनाव लडऩे वाले ताराचंद साहू भले ही हार गए हों पर किसी निर्दलीय को लेकसभा चुनाव में करीब दो लाख बासठ हजार वोट मिलना रिकार्ड ही है। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की तरह छत्तीसगढय़ावाद और आदिवासी नेतृत्व दो बड़े मुद्दों पर चर्चा जारी रहेगी तो बस्तर में नक्सलवाद की समस्या तो सरगुजा ेमं धर्मान्तरण राजनीति का बड़ा विषय समस्या हल तक बना रहेगा।


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