Friday, June 19, 2009

अलग राज्य का सपना यथार्थ बना

एक सपना था जो बहुतों के दिल और दिमाग में छाया हुआ था कि छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश से अलग कर दिया जाए तो इस राज्य का विकास तेज गति से होगा। पृथक राज्य को आर्थिक विकास के लिए बिजली, पानी, लोहा, कोयला,सीमेंट और धान के अलावा 44 प्रतिशत क्षेत्र में फैले जंगल की नियामत मौजूद थी। इस सपने को पूरा किया पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रायपुर की आमसभा में की गई घोषणा के अनुरूप एक नवंबर 2000 को देश के 26वें राज्य के रूप में गठिक छत्तीसगढ़ के निर्माण के रूप में श्री बाजपेयी सदैव याद किए जायेगें। वहीं इस राज्य निर्माण के लिए अथक प्रयास करने वाले तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकेगा। बात शुरू हुई थी पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग से बताते है कि सन् 1956 में मध्यप्रदेश राज्य पुर्नगठन से पूर्व छत्तीसगढ़ सन् 1948 से मध्य भारत एवं उससे पूर्व सेन्ट्रल प्रोविंयशल (सीपी) में शामिल था उससे पहले 1952 में खूबचंद बघेल ने छत्तीसगढ़ महासभा के अधिवेशन में पृथक छत्तीसगढ़ की मांग रखी और बाद में वे छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा कहलाए। इसके अलावा ठाकुर प्यारे लाल सिंह, पं. सुंदर लाल शर्मा, बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल, घनश्याम सिंह गुप्ता जैसे कई लोगों ने छत्तीसगढ़ राज्य स्थापित करने के लिए वैचारिक आंदोलन को जन्म दिया। इसके बाद संत-कवि पवन दीवान हरि ठाकुर और बहुत से लोगों ने इस मशाल को थामा और राज्य निर्माण की आवाज बुलंद करते रहे। उसी दौरान बहुत से ऐसे लोग भी थे जो इस मांग से सहमत नहीं थे उनका कहना था कि इससे क्षेत्रीयता की भावना को बढ़ावा मिलेगा और देश में अलगावाद पनपेगा। इन लोगों में शुक्ल बंधुओं का नाम प्रमुख था। सन् 1991 में छत्तीसगढ़ राज्य का मुद्दा ठंडे बस्ते मेंं था। उस दौर में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के प्रदर्शन समाचार पत्रों में छाए हुए थे। छत्तीसगढ़ की औद्योगिक नगर भिलाई केन्द्र बिन्दु बनी हुई थी और मजदूरों के धरनाप्रदर्शन ने उद्योगपतियों की नींदे उड़ा दी थी। शांत कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी की आवाज ने क्रांति पैदा कर दी थी। जनता भी आश्चर्यचकित थी कि कैसे मजदूर एकजुट होकर हक के लिए लड़ रहे है। उसी दौरान 28 दिसंबर 1991 को श्री नियोगी की हत्या ने बवाल खड़ा कर दिया एक जुलाई 1992 को भिलाई में रेल रोको आंदोलन के तहत पुलिस फायरिंग में 13 मजदूरों की मौत हो गई इस दौरान मजदूर आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का ये संघर्ष जहां रंग ला रहा था वहीं छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को पुन: लाइमलाइट लाने के लिए तत्कालीन सांसद और कांग्रेस (इ) के राष्ट्रीय प्रवक्ता स्व. चंदूलाल चंद्राकर ने अपनी वाणी मुखरित की। सच कहा जाए तो श्री चंद्राकर ही थे जिन्हे छत्तीसगढ़ राज्य प्रेरणास्त्रोत कहा जाना चाहिए। इस बात से राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी सहमत है और सन् 2009 में श्री चंद्राकर की पुण्यतिथी पर उनके गृहग्राम कोलिहापुरी, जिला दुर्ग में श्री जोगी ने राज्य निर्माण का श्रेय श्री चंद्राकर को दिया है। (समाचार पत्र की कटिंग सम्मलित है)21 मई को 1991 को कांग्रेस आदि के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री राजीवगांधी की हत्या के बाद इंका को केन्द्र में सरकार बनाने का अवसर मिल गया था और नरसिंह राव प्रधानमंत्री चुने गए थे तो प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा थे। छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को लेकर तब छत्तीसगढ़ में केन्द्र में तत्कालीन केन्द्रीय संसदीय कार्य मंत्री विद्याचरण शुक्ल से सवाल किया जाता था तो वे राज्य पुर्नगठन आयोग के गठन की बात कहकर मुद्दे से अलग हो जाते थे वहीं उनके बड़ा भ्राता मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल का भी यही रवेैया रहता था तब पृथक आंदोलनकारी शुक्ल बंधुओं को जमकर कोसा करते थे और राज्य निर्माण में सबसे बड़ा बाधक समझते थे। वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाला पटवा पृथक छत्तीसगढ़ राज्य को कुंठाग्रस्त नेताओं की मांग बताते रहे। उनके इस बयान को पक्ष में मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय भी शामिल हुए तब भारतीय जनता पार्टी के ही रमेसबैस, बद्रीधर दीवान, रेशमलाला जांगड़े और चंद्रशेखर साहू, दिलीप सिंह जूदेव, छत्तीसगढ़ राज्य के समर्थक रहे। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की मांग को ही देखते हुए श्री पटवा ने सन् 1992 में छत्तीसगढ़ के सात जिलों को 16 जिलों में पुर्नगठित किया जो बड़ा कदम था इससे छत्तीसगढ़ की जनता को राहत मिली। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में उस समय भाजपा के पैतरों पर मासिक पत्रिका मध्यभारत पनिदृश्य जानवरी 1999 में अमरनाथ तिवारी का लेख संलग्न है। छह दिसम्बर 1992 का दिन लोग भूले नहीं है। इस दिन बहुचर्चित आयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा रामभक्तों ने ढहा दिया। पूरे देश में उन्माद फैल गया। हिन्दुत्व और हिन्दु अस्मिता के मुद्दों ने राजनीति में भूचाल ला दिया। ये वो दौर था जब भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता शिखर पर थी और उनके नेताओं के तेजतर्रार भाषण आग उगलते थे। रामलाल आयेंगे, मंदिर वही बनायेगें, जय-जय श्री राम के गगन भेदी नारों के साथ जनसौलाब उमड़ पड़ा था। तब राजनीति का एक ही एजेंडा था। उसी दौरान भोपाल में हुए संप्रदायिक दंगे के बाद केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने प्रदेश की भाजपा सरकार को भंग कर दिया। कहते है इसके पीछे केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह की बड़ी भूमिका थी। सन् 1993 के विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने अपने घोषणा पत्र में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का वायदा किया। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और मुख्यमंत्री दिगविजय सिंह इस वायदे के प्रति संकल्प का दुहराते है।(संडेमेल-6-12 फरवरी 1994 में प्रकाशित समाचार की कटिग संलग्न है)प्रदेश कांग्रेस आई के घोषणा पत्र में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का वायदा शामिल होने के बाद भी शुक्ल बंधु इस बात से सहमत नहीं थे। वहीं स्व. चंदूलाल चंद्राकर के साथ ही राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल, अजीज जोगी, पवन दीवान, नरसिंह मंडल, रविन्द्र चौबे, भूपेश बघेल, सत्यनारायण शर्मा, राजकमल सिंघानिया, गुरुमुख सिंह होरा, राधेश्याम शर्मा जैसे नेता साथ में थे तो भारतीय जनता पार्टी से बर्खास्त केशव सिंह ठाकुर के अलावा बीजेपी के ही रमेश बैस, चंद्रशेखर साहू, दिलीप सिंह जूदेव, रेशम लाल जांगडे, के अलावा इनायत अली श्रीचंद सुंदरानी पृथक राज्य के पक्षधर थे। पटवा मंत्री मण्डल में शामिल रहे विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने भी तब छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में सहमति प्रदान कर अपनी प्रोफाईल सुधार ली थी।(13 दिसम्बर 1993 को दैनिक भास्कर में प्रकाशित समाचार)पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को लेकर गठित छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच मेंं सभी दलों के नेता शामिल थे तो इसके लिए 11 सदस्यीय प्रेसिडियम गठित था वहीं महासचिव की जवाबदारी डॉ. केशव सिंह ठाकुर के कंधों पर थी। 5 अक्टूबर 1993 को छत्तीसगढ़ बंद के बाद अगले वर्ष पुन: 1994 को 5 अक्टूबर के ही दिन सभी जिला मुख्यालयों में धरना-प्रदर्शन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसी दौरान श्री चंद्राकर पर ही उंगली उठी कि वे मंच का राजनैतिक उपयोग कर रहे है और राज्य गठन के प्रति गंभीर नहीं है उस दौरान उच्चन्यायालय की बेंच छत्तीसगढ़ में स्थापित करने की मांग भी जोर-शोर से उठी थी और रायपुर एवं बिलासपुर के बीच इस बात को लेकर भारी विवाद था। तब 26 दिसंबर सन् 1994 को श्री चंद्राकर के रायपुर आगमन पर उनके द्वारा जवाब दिया गया कि केन्द्र पहले खंडपीठ की घोषणा कर दे रायपुर-बिलासपुर का मसला बाद में तय कर लिया जायेगा। (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न है)दो जनवरी 1995 को रायपुर में सर्वदलीय राज्य निर्माण मंच की रैली और भाषण ऐतिहासिक रहा। सप्रे शाला मैदान में कांग्रेस के नेताओं ने छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आर-पार की लड़ाई के लिए आव्हान कर इस मांग को सार्थक प्रदान की। (समाचार की कटिंग संलग्न) सन् 1996 के लोकसभा चुनाव से पूर्व 11 मार्च 1995 को नई दिल्ली में राज्य आंदोलन कर्मियों ने प्रदर्शन किया और गिरफ्तारियां दी। इस प्रदर्शन में कांग्रेस सांसद पवन दीवान, व अजीत जोगी के अलावा भाजपा राज्यसभा सदस्य लखी राम अग्रवाल एवं गोविंद राम गिरी शामिल हुए। छत्तीसगढ़ राज्य सर्वदलीय मंच के नेता पुरुषोत्तम कौशिक ने इस संदर्भ में रायपुर लौटकर पत्रकारों को प्रधानमंत्री को सौंप गए ज्ञापन से अवगत कराया। (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न) छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच के अध्यक्ष मंडल के सदस्य चंदूलाल चंद्राकर का आकस्मिक निधन हो गया। इससे अलग छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण को बड़ा झटका लगा। सन् 1996 के चुनाव में केन्द्रीय कांग्रेस दल ने अपने घोषणा पत्र में अलग छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का वायदा किया जो एक बड़ी उपलब्धी रही ( समाचार पत्र कटिंग संलग्न)श्री चंद्राकर के मार्गदर्शन विहिन के बाद भी छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच काम करता रहा है उसने आर्थिक नाकेबंदी और रेल रोको आंदोलन की घोषणा की लेकिन छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के सहयोग नहीं मिलने से आंदोलन फिस्स हो गया। (कटिंग संलग्न) उसी दौरान व्यापारियों में दो गुट बन गए और छत्तीसगढ़ फेडरेशन ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज का गठन हुआ जिसमें बिलासपुर में रेल जोन की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ बंद का आव्हान किया लेकिन छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्रीज के असहयोग से यह असफल रहा। इसी दौरान सन् 1996 के लोकसभा चुनाव से शेयर दलाल हर्षद मेहता के प्रतिभूति घोटाले के अलावा हवाला कांड ने देश की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी थी। हर्षद मेहता कभी रायपुर में ही रहे है तो हवाला काण्ड में भिलाई के उद्योगपति बी.आर. जैन केन्द्र बिन्दु में थे वहीं इस मामले में तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री एवं जलसंसाधन मंत्री विद्याचरण शुक्ल का भी नाम शामिल था। 1996 के लोकसभा चुनाव से पूर्व छत्तीसगढ़ राज परिषद का गठन जरूर हुआ जिसने इस अलग राज्य के मुद्दे पर चुनाव लडऩे और जनमत संग्रह की बात रही लेकिन असरकारक नहीं रहा अभियान। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों दलों ने अपने किया जिसे छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज ने असहयोग कर असफल कर दिया। सन् 1998 में केन्द्र जनतादल सरकार के अवसान के बाद भारतीय जनता पार्टी की 23 दलों की गठबंधन सरकार बनी जिसके राष्ट्रीय एजेंडों में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण को शामिल किया जाए तो इधर विधानसभा चुनाव से पूर्व मुख्यमंत्री दिगविजय सिंह ने बड़ा दांव खेलते हुए 31 अगस्त 1998 को मध्यप्रदेश विधानसभा का विशेष सत्र आहूत कर मध्यप्रदेश पुर्नगठन विधेयक 1998 प्रस्तुत कर छत्तीसगढ़ राज्य की नींव रख दी (कटिंग संलग्न)मध्यप्रदेश पुनगठन विधेयक विधानसभा मे पारित होकर लोकसभा में भेज दिया गया जहां भारतीय जनता पार्टीे के तत्कालीन सांसद चंद्रशेखर साहू ने पूरा दबाव बनाया कि इसे संसद में प्रस्तुत किया जाए लेकिन शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन यह पेश हुआ। सत्रवासन होने की वजह से यह मुद्दा फिर से ठंडे बस्ते में चला गया (कटिंग संलग्न)शीतकालीन सत्र के अवसान पश्चात इसे 1999 के बजट सत्र में पारित होने की उम्मीदें तत्कालीन सांसद एवं केन्द्रीय राज्य मंत्री रमेश बैस को थी और वे इसके लिए प्रयासरत भी रहे। (समाचार कटिंग संलग्न) लेकिन ऐसा नहीं हुआ इधर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ सचिवालय और विधानसभा भवन की कवायद शुरू कर दी लेकिन तब भी बहुत से लोगों को ये उम्मीद नहीं थी कि राज्य इतनी जल्दी बन जायेगा।दरअसल उस समय भारतीय जनता पार्टी आगामी नवम्बर माह में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव में लाभ लेना चाहती थी सो उसने संसद के अंतिम दिन यह संसदीय कार्यमंत्री मदनलाल खुराना ने प्रस्तुत किया। विधानसभा चुनाव में दोनों राजनैतिक दलों बीजेपी और कांग्रेस ने फिर ये वायदा घोषणा पत्र में किया और भाजपा ने एक वोट से दो सरकार का नारा भी दिया। इसके चलते भारतीय जनता पार्टी को छत्तीसगढ़ अंचल में बहुत लाभ हुआ और उसे अच्छी खासी सीटें भी मिली लेकिन शेष मध्यप्रदेश की जनता ने राज्य के बंटवारे पर एक तरह से नाखुशी जाहिर की और भाजपा सत्ता से दूर ही रही। चुनाव नतीजों के बाद यह लगने लगा कि केन्द्र की भाजपा सरकार अब छत्तीसगढ़ राज्य के मुद्दे पर चुप्पी साध लेगी। बावजूद इसके 1999 के बजट सत्र में परित होने की उम्मीदें तत्कालीन सांसद एवं केन्द्रीय राज्य मंत्री रमेश बैस को थी और वे इसके लिए प्रयासरत भी रहे। (समाचार कटिंग संलग्न)लेकिन ऐसा नहीं हुआ इधर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने छत्तीसगढ़ सचिवालय और विधनसभा भवन की कवायद शुरू कर दी लेकिन तब भी बहुत से लोगों को ये उम्मीद नहीं थी कि राज्य इतनी जल्दी बन जायेगा। (समाचार कटिंग संलग्न)सन् 2000 ऐतिहासिक घटनाक्रम का वर्ष रहा। वर्ष की शुरूआत में ही अलग छत्तीसगढ़ राज्य का मुद्दा बड़ी तेजी से समाचार पत्रों की सुर्खियों में छा गया। वर्ष की शुरूआत में ही छत्तीसगढ़ राज्य के लिए लोक कलाकारों को संगठित करने की योजना लोकरंग के महासचिव तपेश जैन ने बनाई और अध्यक्ष मोहन सुंदरानी व युवा कांग्रेस नेता अमर जीत चावला के समक्ष प्रस्ताव रखा कि नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर धरना दिया जाए। 6 फरवरी 2000 को सौ से भी ज्यादा लोक कलाकारों ने धरने के साथ ही अपनी कला का प्रदर्शन किया। न्यूज चैनल वालों के लिए ये आकर्षण का केन्द्र बन गया। तमाम बड़े चैनलों ने छत्तीसगढ़ी कलाकारों की कला प्रदर्शन के साथ राज्य की मांग को रखा जो देश भर का ध्यान आकर्षित हुआ। अब तक के धरना प्रदर्शनों में जहां केवल भाषणबाजी होती थी वहां पंडवानी, पंथी, भरथरी के अलावा लोकगीत, संगीत, नृत्य ने सभा बांध दिया। इस कार्यक्रम में हिचक के साथ पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल भी शामिल हुए जो इससे पहले तक राज्य निर्माण के मुद्दे पर अलग राग अलापते रहे है। कार्यक्रम की सफलता से श्री शुक्ल के मन में राज्य आंदोलन की भावना पनपी और फिर उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य संघर्ष मोर्चा की स्थापना कर तीन चरणों के आंदोलन की घोषणा की। पहले में छत्तीसगढ़ बंद दूसरे चरण में जेल भरो आंदोलन और तीसरे चरण मेें 25 जुलाई 2000 को संसद का घेराव। इन तीन चरणों के आंदोलन में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच के कई नेता आचार्य सरयूकांत झा, जीवेन्द्र नाथ ठाकुर सहित कई लोग जुड़ गए। इधर कांग्रेस के ही कई नेता श्री शुक्ल के इस कदम से हतप्रभ थे तो वहीं वे इस आंदोलन पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते रहे। सबसे ज्यादा विरोध तत्कालीन मंत्री भूपेश बघेल ने किया जो छत्तीसगढ़ के स्वप्न दृष्टा स्व. खूबचंद बघेल की जन्म शताब्दी के अवसर पर रायपुर में स्वाभिमान रैली का आयोजन में जुटे थे। जेलभरो आंदोलन के साथ ही कांग्रेस में बयानबाजी भी पक्ष-विपक्ष में शुरू हो गई। (समाचार पत्र की कटिंग)विद्याचरण शुक्ल के छत्तीसगढ़ राज्य संघर्ष मोर्चा के आंदोलन ने कांग्रेस की राजनीति में ही हलचल मचा दी। तत्कालीन मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने रायपुर के कांग्रेस भवन में बैठक आयोजित की उद्देश्य था कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा कांग्रेस संसद सदस्यों को सहमति का निर्देश देना और भिलाई व राजनांदगांव सभा में इसके लिए प्रतिबद्धता दोहराना। इस बैठक में कांग्रेस के नेता विद्याचरण शुक्ल के संघर्ष मोर्चा के आंदोलन की जगह कांग्रेस पार्टी से आंदोलन चलाए जाने पर जोर देते रहे जो विवाद का बना कारण भी जमकर हुड़दंग भी हुआ। (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न)वहीं तत्कालीन मंत्री धनेंद्र साहू और सत्यनारायण शर्मा वीसी शुक्ल के आंदोलन से सहमत नहीं थे (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न)स्वाभिमान रैली के जरिए छत्तीसगढिय़ावाद के मुद्दे को उठाने वाले तत्कालीन मंत्री भूपेश बघेल भी वीसी शुक्ल के खिलाफ थे और उन्हे भाजपा पर भरोसा भी नहीं था (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न)इधर भारतीय जनता पार्टी के नेता और तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की बात लगातार करते रहे और उन्होंने संसद के पावस सत्र में इसके विधेयक की प्रस्तुति का भरोसा भी दिलाया। (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न)19 जुलाई को रायपुर में स्वाभिमान रैली में प्रदेश कांग्रेस सरकार के मंत्री भूपेश बघेल के अलावा कुर्मी समाज के लोग बड़ी संख्या में जुटे जिसमें केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस भी थे। अगले ही दिन 20 जुलाई को छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए संघर्ष मोर्चा का बंद भी सफल रहा। (समाचार पत्र की कटिंग संलग्न)25 जुलाई 2000 का दिन छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए ऐतिहासिक था। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण संघर्ष मोर्चा के साथ ही छत्तीसगढ़ शिवसेना ने संसद का घेराव जबर्दस्त ढंग से किया। हजारों लोग इस प्रदर्शन में शामिल हुए। इसके लिए छत्तीसगढ़ राज्य संघर्ष मोर्चा ने छत्तीसगढ़ से नई दिल्ली तक के लिए पहली बार विशेष रेलगाड़ी की व्यवस्था की थी। इधर जहां संसद के बाहर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए प्रदर्शन हो रहा था वहीं संसद के भीतर गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने तीन अलग राज्य छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड के लिए विधेयक प्रस्तुत कर राज्य निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की। संघर्ष मोर्चा के इस आंदोलन में मध्यप्रदेश कांग्रेस सरकार के मंत्री महेन्द्र कर्मा, धनेन्द्र साहू के अलावा कांग्रेस विधायक विधान मिश्रा, मो. अकबर, धर्मजीत सिंह, मंतूराम पवार, राजेन्द्र पामभोई, रामलाल भारद्वाज, मदनगोपाल सिंह, प्रोफेसर गोपाल राम, हरषद मेहता, घनाराम साहू, अमितेश शुक्ल के अलावा पूर्व मंत्री अशोक राव, पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम, पूर्व सांसद खेलन राम जांगडे, श्रीमती वीणा वर्मा भी शामिल हुई। प्रधानमंत्री को सौंपे जाने वाले ज्ञापन की सूची की प्रति संलग्न है। अगस्त में छत्तीसगढ़ सहित तीन राज्यों का राज्य पुर्नगठन विधेयक संसद में पारित हो गया तो 28 अगस्त 2000 को महामहिम राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य गठन की तिथी तय हो गई। इसी दौरान छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री पद की भागदौड़ शुरू हो गई। महेन्द्र कर्मा ने आदिवासी विधायक को मुख्यमंत्री बनाने लांबिग शुरू की और आदिवासी एक्सप्रेस दौडऩे लगी। दरअसल उस दौरान आदिवासियों विधायकों को बस में सवार कर बस्तर से लेकर सरगुजा तक की यात्रा कार्यक्रम ने ही आदिवासी एक जुटता को उक्त नाम दिया जो आज भी प्रयोग किया जाता है। आदिवासी एक्सप्रेस की बैठको में कांगे्रस के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजीत जोगी भी शामिल होते रहे लेकिन उन्हे बाहर का रास्ता दिखाने के लिए महेन्द्र कर्मा ने पूरी ताकत लगा दी थी। उसी दौरान श्री कर्मा और श्री जोगी के बीच बढ़ी दूरियां बाद में श्री जोगी के फर्जी आदिवासी प्रमाण पत्र को लेकर हुए बवाल का कारण भी बनी थी। (समाचार कटिंग संलग्न)छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री को लेकर कांग्रेस में भारी उठापटक मची रही। एक नवंबर से पूर्व अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव गुलाब नबी आजाद और प्रदेश प्रभारी प्रभाराव कांग्रेस विधायकों की रायशुमारी के लिए रायपुर पहुंचे। नए सर्किट हाऊस शंकर नगर में पहले कांग्रेस विधायकों की बैठक हुई फिर उसके बाद आलाकमान द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों ने अलग-अलग विधायकों से चर्चा कर मुख्यमंत्री के नाम मांगे गए। इससे पहले समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुका था कि श्रीमती सोनिया गांधी ने अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनाने की हरी झंडी दे दी है और तत्कालीन दिग्विजय सिंह गुट को यह संदेश दे दिया गया था कि हाई कमान श्री जोगी को मुख्यमंत्री बनाना चाहता है। उधर विद्याचरण शुक्ल मुगालते में थे कि छत्तीसगढ़ राज्य के लिए अंतिम समय में उन्होंने संघर्ष किया है सो मध्यप्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ में शुक्ल परिवार का सदस्य ही प्रथम मुख्यमंत्री बनेगा कहते है। राजनीति में पूर्व कर्म के फल जरूर मिलते है सो नरसिंह राव सरकार में शक्तिशाली रहे श्री शुक्ल ने तब राजनीति से दूर श्रीमती सोनिया गांधी की भारी उपेक्षा की थी वो दिन श्रीमति गांधी भूली नहीं होगी अत: श्री शुक्ल को तवज्जों नहीें मिली और मात्र सात विधायकों का साथ ही उनके पास था। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा अजीत जोगी के नाम की करने के बाद दिग्विजय ंिसंह, गुलाब नबी आाजद और श्रीमती प्रभा राव विद्याचरण शुक्ल के जख्मों पर मरहम लगाने के उद्देश्य से उनके लाभांडी स्थित फार्म हाऊस गए तो राजनीति की ऐसी काली स्याह घटना हुई जो इतिहास में शर्मनाक ही कही जायेगी कि इस दल को वीसी समर्थकों ने धक्का मुक्की और गाली गलौज के साथ स्वागत किया। राज्य गठन की बेला में इस अभूतपूर्व घटना ने छत्तीसगढ़ को जिस तरह से कलंकित किया उसके परिणाम स्वरूप बाद में कई घटनाएं हुई जो राज्य की राजनीति में उथल पुथल का कारण बनी इस घटना के बाद विद्याचरण शुक्ल के फार्म हाऊस पर पत्रकारों का जमवाड़ा हुआ तो श्री शुक्ला ने सफाई दी कि कुछ गुंडे उनके फार्म हाऊस में घुस आए थे जिन्होंने तबके मुख्यमंत्री के साथ अभ्रद व्यवहार किया। दिग्वियज सिंह शालीन राजनीति के लिए पहचाने जाते है सो उन्होंने उस समय के पॉवर का उपयोग नहीं किया और बाद में उनके सहयोग से मुख्यमंत्री बने अजीत जोगी नें भी उन कांग्रेसियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। इस घटना के बाद श्री शुक्ल और श्री जोगी के रिश्ते अच्छे नहीं रहे और कालांतर में श्री शुक्ल के कांग्रेस छोडऩे का कारण भी बनी। वो समय भी आ गया जब छत्तीसगढ़ का उदय हुआ। 31 अक्टूबर की रात कई आशंकाओं से भरी थी। तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी नई दिल्ली से रायपुर पहुंच गई थे। अफवाहें थी कि वीसी शुक्ल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा विधायक दल का समर्थन मिल सकता है। वीसी गुट के विधायकों के साथ बीजेपी विधायकों की मिली जुली सरकार बनाने की भारी कुशंकाए थी। लेकिन पुलिस ग्राऊंड में रात 12 बजे के बाद एक नवंबर की अल सुबह को जब अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो सब आशंकांए समाप्त हो गई। कहते है कि श्री जोगी और श्री आडवाणी के सम्बंध बड़े सौहाद्रपूर्ण थे सो बीजेपी ने ऐसा कुछ नहीं किया जो उसकी राजनीति के लिए अच्छा नहीं होता।बहरहाल तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी ने छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माता के पद से नवाजा और उन्हे इतिहास पुरूष बना दिया। बिना किसी बड़े आंदोलन और खूनी संघर्ष के छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण एक सपने से जैसा था। और सही अर्थों में कहा जाए तो राज्य निर्माण के लिए सभी दलों के नेताओं ने प्रयास किया। भाजपा और कांग्रेस के अलावा जय छत्तीसगढ़ के दाऊ आनंद कुमार का एक हजार दिन तक का धरना दिया हो या डॉ. उदयभान सिंह चौहान का प्रदर्शन। छत्तीसगढ़ पार्टी के जागेश्वर साहू से लेकर अनिल दूबे हो या आजाद छत्तीसगढ़ फौज के ललित मिश्रा और रमेश चंद्राकर। बहुत से नाम है। पौने दो करोड़ जनता की आशा और आकांक्षाओं की पूर्ति में जुटे तमाम ज्ञात अज्ञात लोगों के सपने ने यथार्थ का स्वरूप आखिर पा ही लिया।

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