Tuesday, June 9, 2009

जय छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ - दो दशक की राजनीति
बहुत कुछ लिखा जा चुका है और लिखा जा रहा है। ऐसे दौर में च्च्जय छत्तीसगढ़ ज्ज् लिखना का क्या औचित्य? ये सवाल सबसे पहले जेहन में आया। आखिर क्या हासिल होगा पाठकों को और राजनीति के क्षेत्र में जुटे लोगों को? इसका जवाब मिला तो हौसला बढ़ा। उत्तर था कि सन् 1991 से लेकर सन् 2009 की प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में कार्य के दौरान लाखों लोगों से जो मिलने का अवसर मिला और हजारों व्यक्तियों के विचारों से रूबरू हुआ उनके दृष्टिकोण, अनुभवों के बाद जो दृष्टि मिली वह रेखांकित की जाए जो इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को नया विजन मिलेगा। वहीें इस दौरान के नेताओं के व्यक्तित्व को समझने और उनके कार्यों को स्मृति में संजोने का भी यह पुस्तक माध्यम बनेगी ये विश्वास हुआ बस फिर क्या था, लिखना शुरू कर दिया। पिछले दो दश्क में राजनीति क्रियाकलापों में भी भारी उलटफेर हुआ है। पहले लोग धरना प्रदर्शन के लिए हमे उत्सुक रहते थे लेकिन अब धरना प्रदर्शन की राजनीति समाप्ति के दौर पर है। पहले पार्षद लोगों के घर-घर जाकर उनकी समस्याएं सुनते थे अब लोग पार्षद से लेकर विधायक और सांसद के निवास पर चक्कर लगाते है। पहले राजनेता धंधे और व्यावसाय के कार्य को अच्छा नहीं मानते थे लेकिन अब राजनीति व्यवसाय और धंधा बन गई है। दो दशक में हुए इस आमूल चूल परिवर्तन के साथ ही अब नेता शब्द सम्मान का पर्याय नहीं रह गया है।सबसे महत्वपूर्ण बात समझ में आई कि जीवन की तरह राजनीति भी अबूझ पहेली है जो तय मानकों पर सफल नहीं होती परन्तु जिंदगी में जिस तरह कुछ बातें निर्धारित होती है उसी तरह राजनीति में भी कुछ तय चीजेंं मार्गदर्शन करती है। मसलन हर नये दिन में कुछ ना कुछ नया घटित होता है और किसी का भी जीवन एक ढर्रे पर नहीं चलता। ऐसा होता तो जीवन नीरस हो जाता सो राजनीति में भी नयी-नयी घटनाएं होती रहती है और उसके अपने फलतार्थ होते है। जिस तरह संघर्ष जीवन में सफलता देता है उसी तरह राजनीति में भी देर सबेर सफलता मिलती है। राजनीति में सरलता, सौम्यता, लोकप्रियता प्रदान करती है तो ईष्र्या और टांग खिचाई की प्रवृति बहुत ज्यादा सफलता नहीं प्रदान करती। और सबसे बड़ी बात की सत्ता के पद पर अहंकारी हुए नेताों की ताकत को जनता ने हमेशा परास्त किया है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिगविजय सिंह और छत्तीसगढ़ के वर्तमान मुख्यमंत्र डॉ. रमन सिंह व्यवहार कुशलता की वजह से ही राजनीति में अपनी अलग पहचान कायम किया हुए है। तो विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी, तरुण चटर्जी, प्रेमप्रकाश पाण्डेय और अजय चंद्राकर को सत्ता के पॉवर ने जब-जब मदहोश किया तब-तब जनता ने झटका दिया। सन् 1977 में वीसी शुक्ल का घमंड टूटा तो सन् 2003 में अजीत जोगी व तरुण चटर्जी का और सन् 2008 में श्री पाण्डेय और श्री चंद्राकर का। इन शीर्ष नेताओं के अलावा सूची में बहुत से नाम हो सकते है। यहां जीवन दर्शन का एक सूत्र याद आता है कि अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे है लेकिन उसके अच्छे के लिए केवल सोच रहे तो आपका भला भगवान करेगा वहीं आपने किसी का बुरा नहीं किया पर बुरा सोचा तो उसका फल आपको जरूर मिलेगा। डॉ. रमन सिंह ने पिछले पांच साल के कार्यकाल के दौरन चार साल तक उल्लेखनीय कुछ नहीं किया जो उनके कार्यकाल की उपलब्धी होती परन्तु चुनाव से 11 माह पूर्व 16 जनवरी 2008 में गरीबों को तीन रुपए किलों चांवल देने की योजना लागू कर विपन्न जनता के के हित को सोचा। इस योजना में बहुत कुछ बहस की गुंजाइश है लेकिन इस लोक कल्याणकारी कार्य के आगे बहुत से मुद्दे विधानसभा चुनाव 2008 में गौण हो गए और भारतीय जनता पार्टी की सत्ता में वापसी हुई।बहरहाल सन् 1993 के विधानसभा चुनाव के बाद से सन् 2009 तक हुए विधानसभा- लोकसभा चुनावों की उठापटक और चर्चित घटनाओं की राजनीति अखबारी कतरनों के माध्यम से इस किताब में शामिल किया गया है। इस पुस्तक में समाचार पत्रों की कतरनें सम्मलित करने के पीछे उद्देश्य यहीं है कि उसकी विश्वसनीयता बनी रहे। घटनाओं पर अलग-अलग लोगों का दृष्टिकोण भिन्न हो सकता है इससे मतभेद नहीं। लोकतंत्र में अपनी बात रखने की स्वतंत्रता सबको है पर यह तथयपरक और तर्कसंगत होनी चाहिए। कुतर्क का जवाब दिया जा सकता है। विघ्न असंतोषी राजनीति में हाशिए पर चले जाते है इसी तर्ज पर विरोध की राजनीति हमेशा फायदेमंद नहीं होती। राज्य और जनता के हित में शुरू हुई योजना का स्वागत भले ही ना किया जाए पर विरोध भी नहीं किया जाना चाहिए। विवेचनाओं पर भी उंगली उठेगी, यह स्वभाविक भी है क्योंकि कुछ लोगों को टिप्पणी नहीं पचेगी। लेकिन समय की धारा में उनके कर्म की रेखाएं जो समाचार पत्रों में रच गई है उसे कैसे मिटाया जा सकता है।सो छत्तीसगढ़ की दो दशक की राजनीति पृथक आंदोलन से लेकर छत्तीसगढ़ के गठन और उसके बाद हुए विधानसभा लोकसभा चुनाव की महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ ही राज-काज के दौरान विशेष घटनाक्रम से प्रस्तुत कर रहा है। अच्छी बुरी प्रतिक्रिया सबका स्वागत है क्योंकि ये टिप्पणियां ऊर्जा देती है नए रचनाकर्म को।

6 comments:

  1. बहुत बढिया चिंतन है तपेश जी, इस पर प्रतिक्रिया तो होनी ही चाहिए।

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  2. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
    लिखते रहिये
    चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
    गार्गी

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