Saturday, June 13, 2009

बीजेपी के लोग ही सर्वाधिक बिकाऊ क्यों?

(डिसेंट रायपुर के अंक मंगलवार 29 जुलाई से 4 अगस्त 2008 में प्रकाशित)
रायपुर बीजेपी के ही लोग सर्वाधिक बिकाऊ क्यों? संघ को ही सोचना होगी। तात्कालिक लाभ हानि को छोड़ वापस मौलिक प्रमाणिक पारदर्शी और नैतिक हिन्दुत्व की ओर लौटना होगा। यह भी खोजना होगा कि उपरवालों ने नीचे वालों की सुनना क्यों बंद किया? पार्टी में कार्यकर्ताओं की अपेक्षा चापलूसों को महत्व का परिणाम तो नहीं? यह लंबा संदेश एक मोबाईल सेट से दूसरे मोबाईल को भेजा जा रहा है भेजने वाले लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोग है। आमतौर पर संघ के कार्यकर्ता इस तरह के मैसेज भेजने से परहेज करते है लेकिन चौदहवीं लोकसभा में 22 जुलाई 2008 को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बीजेपी के आठ सांसदों के विश्वासघात ने पार्टी से जुड़े लोगों का मत ही गड़बड़ा दिया है। इस कृत्य से मर्माहत हुए लगों की पीड़ा की अभिव्यक्ति को समझा जा सकता है। हालांकि यह पहला अवसर नहीं जब भारतीय जनता पार्टी जो राजनीति में शुचिता का ढिंढोरा पीटकर कीचड़ में कमल खिलाने का दावा करती है उसके सांसद भटके हो। इससे पहले संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लिने के मामले में हुए स्टिंग आपरेशन दुर्योधन में भी भाजपा सांसद फंस चुके है।चौदहवीं लोकसभा के लिए भाजपा के चुनाव चिन्ह कमल से चुनाव लड़कर कुल 138 सांसद फरवरी 2004 में चुने गए थे जो जुलाई 2008 तक घटकर 122 ही रह गए है। सांसद में पार्टी के गिरते हुए ग्राफ ने बीजेपी के बड़े नेताों की नींद उड़ा दी है तो साधारण कार्यकर्ता भी कम हलाकान नहीं है की आखिर नैतिकता और शुचिता का बड़ा बड़ा दावा करने वाली पार्टी के नेताओं का ये कैसा चरित्र उजागार हो रहा है। प्रसंगवश छत्तीसगढ़ भाजपा में घटित इस तरह की कुछ घटनाओं को फिर से याद करना मुनासिब होगा। छत्तीसगढ़ राज्य गठन नवम्बर 2000 के बाद प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने पहला झटका मरवाही विधानसभा के विधायक रामदयाल उइके को विधानसभा से इस्तीफा दिलवाकर स्वंय चुनाव लड़कर दिया। परंपरा यह है कि पार्टी के ही किसी विधायक से इस्तीफा दिलवाकर मनोनीत मुख्यमंत्री जो विधायक नहीं होता है विधानसभा का सदस्य उपचुनाव जीतकर बनता है लेकिन श्री जोगी ने श्री उइके से इस्तीफा दिलवाकर नवगठित छत्तीसगढ़ की राजनीति में भूचाल ला दिया था इसके बाद भाजपा के ही 12 विधायकों का दलबदल छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा के लिए दूसरा बड़ा झटका था जो उसके सदस्यों की कमजोरी उजागर करता है। श्री जोगी के इन झटकों से भाजपा सन 2003 के पहले विधानसभा में उभरी ही थी कि श्री जोगी ने दूसरे बड़े दल बदल के लिए 45 लाख रुपए की कथित रिश्वत वीरेन्द्र पाण्डेय को देकर बड़े खेल की ब्यूह रचना रची लेकिन केन्द्र में भाजपा सरकार होने की वजह से वे गच्चा खा गए। छोटे से राज्य छत्तीसगढ़ में बीजेपी के विधायकों की इस पाला बदल के पीछे पैसे और मंत्री पद के सौदबाजी के कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं है पर जनता यह मानती है कि यह सब पैसे का खेल था। विधायकों से साथ साथ नगर निगम के महापौर और पंचायतों के सदस्य भी जोगी शासनकाल में पाला बदलते रहे है उस समय भी इस बिकाऊपन को लेकर चिंतन मनन संघ और पार्टी में हुआ था। राजनीति में नैतिकता-पारदर्शिता और जनसेवा का दंभ भरने वाली पार्टी में नेताों के आपसी अंर्तकलह की भी बहुत सी घटनाएं इसे कांग्रेस की बी टीम का दर्जा देती है। बहरहाल 22 जुलाई 2008 को संसद में एक और घटना हुए जिसमें तीन भाजपा सांसदों ने एक करोड़ रुपए के नोट पटल पर रखते हुए नोटों की गुड्डियां लहराकर सनसनी पैदा की। संसद सदस्यों की खरीद फरोख्त का यह पहला मामला नहीं था लेकिन संसद के भीतर हजार-हजार के नोटों की गड्डियां पेश करने की यह अभूतपूर्व घटना थी। ये नोट कैसे आए किसने दिए इस पर विवाद जारी है लेकिन मूल सवाल ये है कि भारतीय जनता पार्टी जो शुचिता का राग अलापती है उसके नेता क्यों बिक रहे है? हर पार्टी का लक्ष्य सत्ता होता है लेकिन कुर्सी के लिए कीचड़ के दाग से सराबोर होना कितना जायज है ये लोक के साथ ही पार्टी के मानस को समझना होगा?छत्तीसगढ़ राज्य गठन के साढ़े सात साल के अंतराल के बाद अब राजनीति का चेहरा मोहरा बदलने लगा है। कांग्रेस और भाजपा में अब थके हुए बेजान और बूढ़े चेंहरों की जगह तेजी से नये चमकदार चेहरे राजनैतिक दंगल में उतर रहे है इन युवा चेहरों का चाल चलन बेहतर है बल्कि जन मुद्दों को गंभीरता से ये नेता समझते है। यह बात अलग है कि पार्टी अनुशासन और बुर्जुग नेताओं की टोका-टाकी से युवा नेता अपने को समेटे हुए है। लेकिन देर सबेर ये आगे बढ़ेंगे। इन नए चेहरों में भाजपा विधायक देवजी पटेल और दुर्ग की महापौर सुश्री सरोज पाण्डेय प्रमुख है। श्री पटेल ने विधानसभा में अपनी सक्रियता से नयी पहचान बनाई तो सुश्री पाण्डेय ने राष्ट्रीय संगठन में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के युवा विधायक नोबेल वर्मा ने भी छ।ग। की राजनीति में पहचान बनाई है तो कांग्रेस विधायक भूपेश बघेल भी मुखर स्वाभाव के चलते चर्चा में है। कांग्रेस के ही छग युवक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष योगेश तिवारी और राजनांदगांव से सांसद चुने गए देवव्रत सिंह की भी चमक बढ़ी है नेतृत्व में परिवर्तन की यह बयार आने वाले विधानसभा चुनाव मेंं भी दिखने की पूरी संभावना है दोनों प्रमुख राजनैतिक दल नए और युवा चेहरों को तवज्जों देंगे ऐसी खबर है भाजपा में तो 14 विधायकों की जिसमें कई मंत्री भी शामिल है टिकट कटने की खबरें है वहीं कांग्रेस में भी हारे हुए लोगों को पुन: अवसर नहीं देने के समाचार है। पिछले चुनाव में दस हजार से भी ज्यादा वोटों से हारे कांग्रेस प्रत्याशियों को पुन: टिकट नहीं देने का निर्णय पार्टी आलाकमान ने लिया है इसमें कुछ अपवाद भले ही हो सकते है पर ज्यादातर दस हजारियों को मायूस होना पड़ेगा। बहुजन समाज पार्टी ने प्रत्याशियों की जो सूची जारी की है उसमें भी ज्यादातर युवा लोग है तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी ने लोगों को अवसर प्रदान करना चाहती है। घिसे पिटे चेहरों से तंग जनता भी बदलाव चाहती है सो उम्मीद है कि छग की तीसरी विधानसभा में नए चेहरा बदलने के साथ ही रीति नीति में भी परिवर्तन होना चाहिए ताकि जनता का भला हो सके।

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