भले ही सत्ता के ढिढोंरचियों की जमात को यह बात नहीं जमें लेकिन विचारशील लोग कहने लगे है कि आखिर छत्तीसगढ़ का विकास कैसे होगा? सवाल इसलिए उठाया जा रहा है कि डॉ. रमन सिंह सरकार ने अब तक प्रदेश विकास की कोई ठोस योजना ही नहीं प्रस्तुत की है। पिछले छह सालों से जनता इस इंतजार में है कि भाजपा सरकार विकास मॉडल देर सबेर पेश करेगी और एक उम्मीद उत्पन्न होगी कि इस रास्ते पर चलकर अमीर धरती के गरीब लोग सुखी हो सकेंगे।
गौरतलब है कि पृथक छत्तीसगढ़ राज्य गठन का उद्देश्य ही ये था कि मध्यप्रदेश के इस भूृ-भाग में तमाम आर्थिक संसाधन होने के बाद भी इलाका विकास की दौड़ में पिछड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ की खनिज-वन संपदा भरपूर होने के बाद भी यहां का पिछड़ापन अभिशाप ही था। राज्य गठन का बहुत बड़ा कारण यही था। उस दौरान कल्पना की गई थी कि अगर मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ को अलग कर दिया जाए तो ये क्षेत्र पांच साल में ही प्रगति के रथ पर सवार होकर सरपट दौडऩे लगेगा। पॉच क्या नौ बरस बीत गए है लेकिन अब तक राज्य के विकास का प्रारूप ही तय नहीं हो पाया है। विडंबना ही कही जायेगी कि डेवलपमेंट के लिए प्लानिंग ही नहीं है जो ये आश्वासन दे सके कि इस रास्ते पर चलकर राज्य विकसित हो सकेगा।
यहां याद दिलाना लाजमी होगा कि धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के 44 प्रतिशत भू-भाग में जंगल है तो लोहा, कोयला, सीमेंट, एल्युमीनियम के बड़े-बड़े कारखाने यहां स्थापित है। और कुछ लग भी रहे है। बावजूद इसके राज्य पिछड़ा हुआ है। रोजगार के लिए पढ़े-लिखे नौजवान भटक रहे है तो खेतिहर मजदूर अभी भी पलायन को मजबूर है। प्रदेश में न तो उच्च शिक्षा के माध्यम है और ना ही सूदूर दंतेवाड़ा और कोरिया में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था हो पाई है। सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकार के पास कोई बड़ी योजना ही नहीं है । आवागमन के साधनों में सड़केें ही है जो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। रेल सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकार खानापूर्ति के लिए बयानबाजी तक सीमित है।
देश के नक्शे में भौगौलिक दृष्टि से भले ही छत्तीसगढ़ राज बन गया है लेकिन इस प्रदेश की अपनी पहचान बनना बाकी है। कृषि, उद्योग-व्यापार और कला संस्कृति के माध्यम से अलग छवि बनाने के लिए जरूरी है कि योजना बनाई जाए और सारे लोग उसे कार्यरूप में परिणित करने का प्रयास करें। यह बाद की बात होगी कि योजना का क्या हश्र होगा? पहली जरूरत तो इस बात ही है कि कैसे छत्तीसगढ़ का विकास हो? छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद कांग्रेंस के मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने प्रदेश विकास के प्रति चिंता जाहिर करते हुे इस दिशा में दो कदम जरूर बढ़ाया था। श्री जोगी ने यहां के कृषि और वनौषधि उत्पादों पर वैल्यू एडीशन का कांसेप्ट रखा और फसलचक्र परिवर्तन सहित कई मामलों में उन्होंने विकास की अवधारणा रखी। तेजी से राजनैतिक क्षितिज मं दैदीव्यमान होने की अति महत्कांक्षा से श्री जोगी राजनीति के कुचक्र में फंसकर विवादास्पद हो गए और सरल-सहज डॉ. रमन सिंह को यह दायित्व मिल गया।
अच्छी बात है कि सरलता से डॉ. रमन सिंह सरकार चला रहे है लेकिन बिना किसी वि•ान और योजना के सरकार का कामकाज अधूरा ही है। बहरहाल छत्तीसगढ़ के विकास के लिए सरकार को योजना का प्रारुप बताना ही चाहिए। ये मांग कोई नाजायज नहीं है जिसे सत्ता के चाटुकार हवा में उड़ा दे कि श्री जोगी की तरफदारी करने वाले लोगों को ये हक नहीं है कि वे सरकार से कोई मांग रखे। दरअसल कतिपय नेताओं के भीतर सत्ता के मद ने लोक तंत्र की परंपरा और जनता के मौलिक अधिकार को कुचलने का दंभ उत्पन्न कर दिया है। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि केवल 38 प्रतिशत लोगों ने ही उन्हें वोट दिया है और विपक्षी दल से मात्र दो फीसदी की बढ़त ने ही उन्हें कुर्सी दी है। अभी भी प्रदेश में रहने वाले लाखों लोगों ने इनके कार्यों पर शत्-प्रतिशत मुहर नहीं लगायी है अगर राजनीति के जानकार इस बात पर ध्यान आकर्षित कर रहे है कि छत्तीसगढ़ के विकास का प्रारूप प्रस्तुत किया जाए तो सरकार को सोचना तो चाहिए।
Saturday, June 27, 2009
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बने लिखे हावव. छत्तीसगढ बर अपन बिचार के गंगा बहावत रहव.
ReplyDeletevery good artical sir
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